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अमेरिका द्वारा टैरिफ़ और ई-कॉमर्स निर्यात का मुद्दा

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

अमेरिका द्वारा भारत पर 50% टैरिफ़ लगाने के बाद भारत के निर्यात क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है। इस स्थिति में सरकार ने ई-कॉमर्स निर्यात को बढ़ावा देने के नए रास्तों की तलाश शुरू की है। ई-कॉमर्स को भारत के लिए भविष्य का बड़ा निर्यात इंजन माना जा रहा है किंतु इसके लिए नीतिगत एवं संरचनात्मक बदलाव की ज़रूरत है।

हालिया अमेरिकी टैरिफ़ के बारे में

  • अमेरिका ने भारत से आयात पर 7 अगस्त, 2025 को 25% टैरिफ लागू किया और 27 अगस्त से अतिरिक्त 25% टैरिफ (पेनल्टी) जोड़ा, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया। 
    • यह कदम भारत के रूस से तेल खरीद और व्यापार असंतुलन की प्रतिक्रिया में उठाया गया है। 
  • हालाँकि, यह अतिरिक्त टैरिफ लोहा, इस्पात या एल्युमीनियम उत्पादों; यात्री वाहनों जैसे सेडान, स्पोर्ट यूटिलिटी वाहन, क्रॉसओवर यूटिलिटी वाहन, मिनीवैन, कार्गो वैन और हल्के ट्रकों; अर्द्ध-तैयार तांबे व इंटेंसिव कॉपर डेरिवेटिव उत्पादों आदि पर लागू नहीं होगा।

अतिरिक्त टैरिफ के प्रभाव 

  • निर्यात में कमी: ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, $48.2 बिलियन के निर्यात प्रभावित होंगे, जिसमें टेक्सटाइल्स ($4 बिलियन), रत्न एवं आभूषण ($25 बिलियन) और समुद्री खाद्य ($2 बिलियन) शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त झींगा, कार्पेट व फर्नीचर जैसे उद्योग भी अधिक प्रभावित होंगे।  
  • MSMEs पर दबाव: MSMEs क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित होंगे, जो भारत के निर्यात का लगभग 45% हिस्सा हैं। उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बांग्लादेश (18% टैरिफ) और वियतनाम (20% टैरिफ) जैसे देशों के मुकाबले कम हो रही है।
  • आर्थिक प्रभाव: टैरिफ के कारण भारत की जी.डी.पी. वृद्धि 0.2-0.5% तक कम हो सकती है। रोजगार हानि एवं निवेश में कमी की आशंका है।
  • उपभोक्ता प्रभाव: अमेरिकी उपभोक्ताओं को भारतीय उत्पादों, जैसे- जेनेरिक दवाओं, के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।

सरकार का ई-कॉमर्स निर्यात पर ज़ोर

  • ई-कॉमर्स निर्यात केंद्र (ECEHs): भारत सरकार ने ‘ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब (Export Hub)’ मॉडल की घोषणा की है और इस दिशा में उद्योग जगत के साथ परामर्श शुरू कर दिए हैं। इसका उद्देश्य MSMEs और छोटे निर्यातकों को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से वैश्विक बाज़ार तक पहुँचाना है।
  • 20,000 करोड़ की निर्यात प्रोत्साहन योजना: अगस्त 2025 में शुरू की गई इस योजना में तरलता, डिजिटल बुनियादी ढांचा एवं ब्रांड इंडिया अभियान पर ध्यान दिया गया है।
  • बाजार विविधीकरण : सरकार यू.के. एवं यूरोपीय संघ (EU) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) का उपयोग कर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका व आसियान (ASEAN) जैसे नए बाजारों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

MSMEs की माँग 

  • वर्तमान में ई-कॉमर्स में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) केवल मार्केटप्लेस मॉडल (जहाँ कंपनियाँ खरीदार और विक्रेता के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करती हैं) में अनुमति है। 
  • किंतु इन्वेंट्री आधारित मॉडल (जहाँ कंपनी स्वयं वस्तुओं का मालिक होकर सीधे ग्राहकों को बेच सकती है) में FDI की अनुमति नहीं है।
  • MSMEs का कहना है कि यदि इन्वेंट्री आधारित मॉडल में FDI को मंज़ूरी दी जाए तो उनका अनुपालन बोझ (Compliance Burden) कम होगा और उन्हें वैश्विक स्तर पर विस्तार में मदद मिलेगी। हालाँकि, परंपरागत खुदरा विक्रेता इसका विरोध कर रहे हैं।

चुनौतियाँ

  • अमेरिका और अन्य देशों द्वारा ऊँचे टैरिफ़ लगाए जाने से भारतीय निर्यात महंगा हो जाता है।
  • वर्तमान नीतियाँ B2B (बिज़नेस-टू-बिज़नेस) निर्यात के लिए बनी हैं, जिससे छोटे निर्यातकों को अधिक कागज़ी कार्यवाही करनी पड़ती है।
  • इन्वेंट्री आधारित मॉडल पर सहमति की कमी उद्योग जगत को विभाजित कर रही है।
  • चीन जैसे देशों की तुलना में भारत का ई-कॉमर्स निर्यात बेहद कम है। 
  • भारत का ई-कॉमर्स निर्यात केवल 5 बिलियन डॉलर है, जबकि चीन का 300 बिलियन डॉलर से अधिक पहुँच चुका है।

आगे की राह

  • भारत को एक अलग ई-कॉमर्स निर्यात नीति लानी चाहिए, जिससे MSMEs और स्टार्टअप्स के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय हों।
  • इन्वेंट्री आधारित मॉडल पर संतुलित नीति बनानी होगी ताकि विदेशी निवेश के साथ-साथ घरेलू खुदरा व्यापारियों के हितों की भी रक्षा हो सके।
  • डिजिटलीकरण, लॉजिस्टिक्स सुधार एवं सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाना आवश्यक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को देखते हुए छोटे निर्यातकों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग देना होगा।
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