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शोध सुरक्षा की आवश्यकता

(सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3: प्रौद्योगिकी, संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना)

संदर्भ 

भारत वर्ष 2047 तक अपने विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका पर बल देते हुए तकनीकी क्षेत्र में एक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहा है। हालाँकि,शोध एवं विकास (R&D) के संदर्भ में ‘शोध सुरक्षा’(Research Security) एक प्रमुख चुनौती के रूप में सामने आती है। ऐसे में शोध सुरक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाए जाने की आवश्यकता है। 

क्या है शोध सुरक्षा (Research security)

शोध सुरक्षा में एक संतुलित दृष्टिकोण शामिल है जो जोखिमों को कम करने और वैज्ञानिक शोध की गोपनीयता के साथ-साथ इसे आर्थिक मूल्य तथा राष्ट्रीय हित के लिए खतरों से बचाता है। 

  • इसके अंतर्गत वैज्ञानिक शोध और उससे प्राप्त उत्पादों के लिए सुरक्षा उपायों का एक सेट शामिल है जो वैज्ञानिकों को बौद्धिक संपदा की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी से लाभ उठाने की अनुमति देता है।

आवश्यकता 

  • रणनीतिक तकनीकी प्रगति : वर्तमान में भारत रणनीतिक प्रौद्योगिकियों जैसे अंतरिक्ष, रक्षा, अर्धचालक, परमाणु प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, जैव प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वांटम प्रौद्योगिकी आदि में लगातार निवेश कर रहा है जिसके लिए रणनीतिक शोध की सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। 
  • राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता : शोध सुरक्षा में किसी भी प्रकार का उल्लंघन तकनीकी प्रगति में विलंब का कारण , संवेदनशील डाटा का विदेशी अभिनेताओं द्वारा दुरुपयोग आदि हो सकता है जो अंततः राष्ट्रीय हितों को प्रभावित कर सकता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण : वैश्विक स्तर पर शोध सुरक्षा उल्लंघन के कई मामले सामने आए हैं, जिनके गंभीर परिणाम हुए हैं। ऐसे में भारत को इन उदाहरणों से सबक लेकर शोध सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत नीति की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए कोविड-19 वैक्सीन शोध सुविधाओं पर वर्ष 2020 में संवेदनशील वैक्सीन शोध और विकास डाटा चुराने के लिए साइबर हमले किए गए थे। 
  • विकसित भारत लक्ष्य : भारत, अपने विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने के साथ ही वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहने, सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने और आर्थिक अवसरों को अनलॉक करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों में निवेश को बढ़ावा दे रहा है ऐसे में शोध के संदर्भ में एक सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता होगी।
  • जोखिम कारक : शोध क्षेत्र में विदेशी हस्तक्षेप, बौद्धिक संपदा की चोरी, आतंरिक खतरे, साइबर हमले और संवेदनशील जानकारी तक अनधिकृत पहुंच उन्नत प्रौद्योगिकियों में निवेश करने वाले देशों के लिए चिंता का विषय हैं। ऐसे में यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये रणनीतिक क्षेत्रों में भारत की प्रगति को कमजोर कर सकते हैं। 

शोध सुरक्षा पर वैश्विक प्रयास 

  • वैश्विक स्तर पर यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) को भी संवेदनशील जानकारी को नष्ट करने या चुराने के लिए कई साइबर हमलों का सामना करना पड़ा है, जिसके कारण ESA को साइबर सुरक्षा पर यूरोपीय रक्षा एजेंसी के साथ साझेदारी विकसित करने के लिए प्रेरित किया गया है।
  • इसके अलावा यूएस चिप्स और विज्ञान अधिनियम में शोध सुरक्षा पर कई प्रावधान हैं, जिन्हें अन्य दिशा-निर्देशों द्वारा पूरक बनाया गया है,इनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी का शोध सुरक्षा ढाँचा शामिल है। 
  • कनाडा ने शोध साझेदारी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा दिशा-निर्देश और संवेदनशील प्रौद्योगिकी शोध तथा चिंता के संबद्धता पर नीति के साथ-साथ संवेदनशील प्रौद्योगिकियों की एक सूची भी बनाई है।

भारत में शोध सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ 

शोध सुरक्षा के संदर्भ में अनेक सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं जिन्हे निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर देखा जा सकता है -

  • फंडिंग और सहयोग पर प्रभाव : शोध सुरक्षा कुछ फंडिंग और सहयोग को प्रभावित कर सकती है जिसका शोधकर्ताओं द्वारा अकादमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने और वैज्ञानिक प्रगति में बाधा डालने के लिए विरोध किया जा सकता है। 
  • संतुलन की आवश्यकता: शोध सुरक्षा को भी खुले विज्ञान के साथ संतुलन बनाना होगा, जिसमें शोध के बुनियादी ढांचे, खुले डेटा को साझा करना और नागरिक विज्ञान के माध्यम से वैज्ञानिक शोध में आम जनता को शामिल करना शामिल है। 
  • राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप : शोध सुरक्षा के क्षेत्र में अतिरिक्त प्रशासनिक और विनियामक प्रणाली अनेक समस्याएं उत्पन्न करती हैं इसके लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि शोध सुरक्षा शैक्षणिक संस्थानों में राजनीतिक और प्रशासनिक  हस्तक्षेप का साधन न बने।
  • क्षमता निर्माण की आवश्यकता : शोध सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण निधि, प्रभावी संचार, सहभागिता और क्षमता निर्माण की आवश्यकता होगी, ताकि भारत में शोध सुरक्षा प्रयासों को डिजाइन, विकसित, कार्यान्वित और नेतृत्व करने वाले पेशेवरों का एक कैडर तैयार किया जा सके। 

भारत में शोध सुरक्षा को बढ़ावा देने के उपाय 

भारत जैसे विकासशील देशों में अकादमिक एवं सरकारी नीति निर्माण में शोध सुरक्षा की अवधारणा पर बहुत कम ध्यान दिया गया है, जिसके कारण ऐसी कमज़ोरियाँ उत्पन्न हुई हैं जिनका विरोधी समूहों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है ।इस संदर्भ में निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है –

  • शोध पारिस्थिकी तंत्र की मैपिंग : इस संदर्भ में शोध पारिस्थितिकी तंत्र में सुरक्षा कमज़ोरियों को व्यवस्थित रूप से मैप करने की आवश्यकता है जिसमें विश्वविद्यालयों में विदेशी प्रभाव की प्रकृति को समझना, प्रमुख शोध प्रयोगशालाओं और संवेदनशील शोध अवसंरचना की कमज़ोरियों का आकलन करना, रणनीतिक प्रौद्योगिकियों में विदेशी सहयोग एवं वित्त पोषण का विश्लेषण करना आदि शामिल है 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : शोध सुरक्षा के क्षेत्र में प्रारंभिक क्षमता निर्माण और जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्वसनीय अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ जुड़ाव की संभावना तलाशी जा सकती है।
  • विभिन्न हितधारकों के मध्य समन्वय :शोध सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी एजेंसियों और शोध संस्थानों को रणनीतिक शोध को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए संभावित कदमों पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। इसके अलावा सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को शोधकर्ताओं के साथ आकर संवेदनशील शोध क्षेत्रों की समझ विकसित करनी होगी। 
    • इसके लिए रणनीतिक मूल्य, संभावित आर्थिक प्रभाव और राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थों के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में शोध का वर्गीकरण भी आवश्यक होगा। 
  • मजबूत नीति निर्माण: नीति निर्माताओं को भारत की व्यापक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी रणनीति के एक हिस्से के रूप में शोध सुरक्षा को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
    • इसमें संवेदनशील डाटा, बौद्धिक संपदा, शोध बुनियादी ढांचे और कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक ठोस प्रयास शामिल है। 

आगे की राह 

  • शोध सुरक्षा के लिए यूरोपीय परिषद द्वारा अनुशंसित एक जोखिम-आधारित और आनुपातिक प्रतिक्रिया दृष्टिकोण पर विचार किया जा सकता है इसके अलावा उभरते जोखिमों पर नज़र रखने के लिए एक शोध सुरक्षा निगरानी तंत्र विकसित करने की आवश्यकता होगी।
  • शोधकर्ताओं को खुले विज्ञान, नियामक बोझ और वैज्ञानिक प्रगति के साथ सुरक्षा मुद्दों का सही संतुलन खोजने के लिए निर्णय लेने के सभी स्तरों पर शामिल किया जाना चाहिए। यहां, 'जितना संभव हो उतना खुला और जितना आवश्यक हो उतना बंद' (the spirit of ‘as open as possible and as closed as necessary’) की भावना निर्णय लेने में मार्गदर्शन करने में मदद कर सकती है।
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