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कार्बन मूल्य निर्धारण और करों पर पुनर्विचार की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

भारत और कई अन्य देश कार्बन मूल्य निर्धारण व कराधान के माध्यम से जलवायु कार्रवाई को मज़बूत करने के तरीके तलाश रहे हैं। 

क्या है कार्बन मूल्य निर्धारण 

  • यह प्रदूषणकारी गतिविधियों को हतोत्साहित करने व निम्न कार्बन विकल्पों को प्रोत्साहित करने के लिए कार्बन उत्सर्जन पर मौद्रिक लागत लगाने की व्यवस्था है।
  • इसके लिए निम्नलिखित साधन अपनाए जाते हैं
    • कार्बन कर : ईंधन की कार्बन सामग्री पर प्रत्यक्ष कर
    • कैप-एंड-ट्रेड/उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) : बाज़ार-आधारित व्यवस्था जहाँ उत्सर्जन परमिट का व्यापार किया जाता है।

यूनाइटेड किंगडम का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र

  • यूनाइटेड किंगडम का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जनवरी 2027 से लागू किया होगा। यह सैद्धांतिक रूप में यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के समान है। 
  • यह इस्पात एवं एल्युमीनियम जैसे क्षेत्रों के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के उत्सर्जनों को कवर करता है। 
    • इसमें उनके उत्पादन में उपयोग की जाने वाली बिजली भी शामिल है। सी.बी.ए.एम. का दायरा बाद में अन्य उत्पादों तक बढ़ाया जाएगा।

संबंधित मुद्दे 

  • ब्रिटेन का दृष्टिकोण घरेलू उत्पादकों द्वारा भुगतान किए गए अंतर्निहित कार्बन मूल्य के बराबर ब्रिटेन में निर्यात पर शुल्क लगाने पर केंद्रित है। 
  • ब्रिटेन के उत्पादकों द्वारा भुगतान की गई कीमत के समान मूल्य लगाकर, कार्बन मूल्य का एकतरफा निर्धारण संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन में कमी पर बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं को उलट देता है।
  • सभी अर्थव्यवस्थाओं में कार्बन की एक समान कीमत कभी नहीं हो सकती है क्योंकि ऊर्जा मिश्रण, उद्योग संरचना एवं तकनीकी उपलब्धता व व्यवहार्यता के आधार पर उत्सर्जन विभिन्न देशों में अलग-अलग होता है।
  •  अक्टूबर 2024 में बहुपक्षीय संस्थानों की एक संयुक्त रिपोर्ट में कार्बन बाज़ारों पर अधिक समन्वय का आग्रह किया गया था, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि खंडित प्रणालियाँ विकृतियाँ व रिसाव उत्पन्न करती हैं और शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को कमज़ोर करती हैं।

भारत के निर्यात पर यू.के. के सी.बी.ए.एम. का प्रभाव

  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) से पहले एल्युमीनियम एवं लौह व इस्पात के लिए ब्रिटेन की मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) दरें 0-6% के बीच थीं। 
  • भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के तहत भारतीय निर्यातों के लिए ये शुल्क शून्य हो जाएँगे। 
    • किंतु जनवरी 2027 से एल्युमीनियम एवं इस्पात के आयात को ब्रिटेन के कार्बन मूल्य के बराबर होना होगा, जो वर्तमान में लगभग $66/tCO₂ है, जिससे निर्यातकों के लिए लागत में कम-से-कम 20% से 40% की वृद्धि होगी।
  • ब्रिटेन का सी.बी.ए.एम. निर्यातक देशों में कार्बन मूल्य निर्धारण के लिए कटौती की अनुमति देता है, जिसमें कार्बन कर या उत्सर्जन व्यापार योजनाओं के तहत भुगतान की गई कीमतें शामिल हैं। 
    • जबकि भारतीय उद्योग कोयला उपकर जैसे शुल्कों के भुगतान के साथ ही नवीकरणीय खरीद दायित्व के अंतर्गत लागत वहन करते हैं। 
    • हाल ही में भारत द्वारा घोषित कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) एक स्पष्ट कार्बन मूल्य निर्धारित करता है। 
      • हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि ब्रिटेन सी.सी.टी.एस. से परे कटौती की अनुमति देगा या नहीं। 

भारत की प्रतिक्रिया 

  • केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार भारत सी.बी.ए.एम. के किसी भी हानिकारक प्रभाव का प्रतिकार करेगा। 
    • हालाँकि, कोई भी संभावित कार्रवाई आसन्न लागत प्रभाव के लिए वांछित राहत प्रदान नहीं कर सकती है।
  • यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका द्विपक्षीय समझौते में पहले ही समाधान किया जाना आवश्यक है। 
  • उदाहरण के लिए, हाल ही में घोषित अमेरिकी-यूरोपीय संघ व्यापार समझौते में यूरोपीय संघ ने लचीलेपन के माध्यम से सी.बी.ए.एम. और कॉर्पोरेट स्थिरता से संबंधित अन्य नियमों पर अमेरिकी चिंताओं को दूर करने पर सहमति व्यक्त की है।

कार्बन मूल्य निर्धारण पर पुनर्विचार की आवश्यकता

  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ : वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्य और राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution: NDC) के लिए बड़े पैमाने पर कार्बन-मुक्ति की आवश्यकता है।
  • राजस्व सृजन : कार्बन कर नवीकरणीय ऊर्जा, हरित बुनियादी ढाँचे और अनुकूलन के लिए धन उपलब्ध करा सकते हैं।
  • समानता संबंधी चिंताएँ : यदि ऊर्जा की कीमतें बढ़ती हैं तो गरीब परिवार असमान रूप से प्रभावित होते हैं; उन्हें प्रतिपूरक उपायों की आवश्यकता होती है।
  • वैश्विक व्यापार में बदलाव : यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) भारत जैसे निर्यातकों पर विश्वसनीय मूल्य निर्धारण अपनाने का दबाव डालता है।
  • प्रभावशीलता अंतराल : वर्तमान कर (जैसे- भारत में कोयला उपकर) उत्सर्जन के केवल एक हिस्से को ही कवर करते हैं, अर्थव्यवस्था-व्यापी नहीं।

वैश्विक अनुभव

70 से अधिक देशों ने कार्बन मूल्य निर्धारण/ई.टी.एस. को अपनाया है।

  • स्वीडन : वर्ष 1991 से उच्च कार्बन कर, विकास को नुकसान पहुँचाए बिना उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी।
  • चीन : वर्ष 2021 में दुनिया का सबसे बड़ा ई.टी.एस. शुरू किया।

वैश्विक प्रयास 

  • उत्सर्जन मापने के तरीकों को संरेखित करने, रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को सुव्यवस्थित करने और हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए समर्थन सुनिश्चित करने के लिए एक वैश्विक कार्बन मूल्य निर्धारण समझौता आवश्यक है।
  •  अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2021 में स्तरित मूल्य निर्धारण के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय कार्बन मूल्य तल (ICPF) का प्रस्ताव रखा:
    • निम्न-आय वाले देशों के लिए $25
    • मध्यम-आय वाले देशों के लिए $50 
    • उच्च-आय वाले देशों के लिए $75
  • इसी के आधार पर विश्व आर्थिक मंच ने वैश्विक कार्बन मूल्य निर्धारण में सुचारू परिवर्तन को सुगम बनाने के लिए तीन-चरणीय दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखा। 
    • इसकी शुरुआत मूल्य निर्धारण एवं रिपोर्टिंग के लिए न्यूनतम मानकों से होगी और इसे क्षेत्रीय प्रणालियों से जोड़ा जाएगा तथा निगरानी एवं सत्यापन प्रक्रियाओं में सामंजस्य स्थापित किया जाएगा।
  • विश्व आर्थिक मंच ने विखंडन को कम करने और एक एकीकृत वैश्विक प्रणाली की ओर बढ़ने के लिए क्षेत्रीय कार्बन बाजारों (यूरोपीय संघ, चीन, भारत, एशिया के अन्य भाग) को जोड़ने का भी प्रस्ताव रखा।

भारत का दृष्टिकोण

  • कोयले पर स्वच्छ ऊर्जा उपकर (बाद में जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति उपकर में विलय)
  • प्रदर्शन, उपलब्धि, व्यापार (PAT) योजना और नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र
  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS), वर्ष 2023 का मसौदा- घरेलू कार्बन बाज़ार के लिए रूपरेखा

भारत में चुनौतियाँ

  • ऊर्जा की कमी और कोयले पर निर्भरता
  • मुद्रास्फीति और सामाजिक प्रतिक्रिया का जोखिम
  • उत्सर्जन निगरानी में प्रशासनिक जटिलताएँ

आगे की राह

  • ऊर्जा-प्रधान उद्योगों से शुरुआत करते हुए कार्बन मूल्य निर्धारण को धीरे-धीरे लागू करना
  • राजस्व का उपयोग हरित सब्सिडी, ग्रामीण विद्युतीकरण और कमजोर परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए करना
  • व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता की रक्षा के लिए घरेलू कार्बन बाजार को वैश्विक प्रणालियों के साथ संरेखित करना
    • कार्बन-प्रधान क्षेत्रों पर कई करों के बजाय CCTS के माध्यम से एकल स्पष्ट कार्बन कर के अंतर्गत कठोर उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों को लागू करने से कार्बन मूल्य निर्धारण में सुधार होगा, अनुपालन एवं निगरानी सरल होगी और भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बनी रहेगी।
  • मापन, रिपोर्टिंग व सत्यापन तंत्र को मजबूत करना।
  • भारतीय उद्योग को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को केवल निर्यात अनुपालन के रूप में नहीं, बल्कि दक्षता व प्रतिस्पर्धात्मकता के साधन के रूप में देखना चाहिए। 
  • कार्बन करों से प्राप्त राजस्व को औद्योगिक डीकार्बोनाइज़ेशन के लिए पुन: प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • वित्त मंत्रालय द्वारा विकसित जलवायु वित्त वर्गीकरण का मसौदा एक अन्य पहल है जो निवेशकों को स्वच्छ तकनीक निवेश को बढ़ावा देने में सक्षम बनाएगी।
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