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ग्रीनवाशिंग (Greenwashing) क्या है ? परिभाषा, प्रकार, उदाहरण, समस्या एवं भारत में स्थिति और उपाय

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में कई बड़ी कंपनियों और वित्तीय संस्थानों पर आरोप लगे हैं कि वे अपने उत्पादों और नीतियों को “पर्यावरण के अनुकूल” (Eco-friendly) बताकर प्रचार कर रही हैं, जबकि वास्तविकता में उनका पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
  • इस प्रवृत्ति को ही कहा जाता है — ग्रीनवाशिंग (Greenwashing)

ग्रीनवाशिंग की परिभाषा :-

  • जब कोई कंपनी, संस्था या सरकार अपने उत्पाद, सेवा या नीति को पर्यावरण के लिए अनुकूल बताने का भ्रामक दावा करती है, जबकि वास्तविकता में वह दावा झूठा या अतिशयोक्तिपूर्ण होता है — तो उसे “ग्रीनवाशिंग” कहा जाता है।

शब्द व्युत्पत्ति:

  • “Green” = पर्यावरण / प्रकृति
  • “Whitewashing” = छिपाने या ढकने की क्रिया
    • इस प्रकार “Greenwashing” का अर्थ है — पर्यावरण के नाम पर झूठा प्रचार।

ग्रीनवाशिंग के प्रकार (Types of Greenwashing)

  1. भ्रामक लेबल (Misleading Labels) – जैसे “100% Natural”, “Eco-friendly”, “Green Product” — परंतु इन दावों का कोई प्रमाण नहीं।
  2. छिपी खामियाँ(Hidden Trade-offs ) उत्पाद के एक छोटे पहलू को “ग्रीन” बताना, जबकि अन्य पहलू अत्यधिक प्रदूषक हों।
  3. अप्रासंगिक दावे (Irrelevant Claims) – जैसे “CFC-free” लिखना उन उत्पादों पर जिनमें CFC पहले से ही प्रतिबंधित हैं।
  4. झूठा प्रमाणीकरण (False Certification) – नकली “eco-labels” या “green tags” का उपयोग।
  5. चयनात्मक जानकारी (Selective Disclosure) केवल सकारात्मक डेटा दिखाना, नकारात्मक तथ्यों को छिपाना।

ग्रीनवाशिंग के उदाहरण (Examples)

  1. विज्ञापनों में झूठे दावे:
    • कुछ तेल कंपनियाँ (जैसे BP, Shell) अपने कार्बन उत्सर्जन को “net-zero” बताती हैं, जबकि उनका मुख्य व्यवसाय अब भी जीवाश्म ईंधन आधारित है।
  2. फैशन उद्योग:
    • “Sustainable Fashion” कहकर ऐसे कपड़े बेचना जो वास्तव में “synthetic microfibers” से बने हों।
  3. वित्तीय क्षेत्र:
    • कई “Green Bonds” या “Sustainable Funds” वास्तविकता में प्रदूषणकारी परियोजनाओं में निवेश करते पाए गए।

ग्रीनवाशिंग की समस्या (Why It’s a Concern)

मुद्दा

विवरण

उपभोक्ताओं को भ्रमित करना

लोग सोचते हैं कि वे पर्यावरण को बचा रहे हैं, जबकि वास्तविकता में नहीं।

जलवायु लक्ष्यों में बाधा

यह “Net Zero” या “Paris Agreement” लक्ष्यों की प्रगति को धीमा करता है।

असमान प्रतिस्पर्धा

वास्तविक रूप से ‘ग्रीन’ कंपनियाँ पीछे रह जाती हैं।

निवेश में विकृति

निवेशक “ग्रीन” समझकर गलत परियोजनाओं में धन लगाते हैं।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य (Global Context)

  • UNEP (United Nations Environment Programme) और OECD ने ग्रीनवाशिंग के विरुद्ध सख्त दिशानिर्देश जारी किए हैं।
  • European Union (EU) “Green Claims Directive” के तहत कंपनियों से वैज्ञानिक प्रमाण मांग रहा है।
  • UK’s Financial Conduct Authority (FCA) ने “Sustainability Disclosure Requirements (SDR)” लागू किए हैं।

भारत में स्थिति (Greenwashing in India)

  1. विज्ञापन नियंत्रण:
    • ASCI (Advertising Standards Council of India) ने “ग्रीन क्लेम्स” के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं (2023)।
  2. SEBI का हस्तक्षेप:
    • SEBI ने Green Bonds Framework (2023) में यह स्पष्ट किया कि झूठे या भ्रामक ‘ग्रीन लेबल’ पर दंड लगाया जाएगा।
  3. CSR और ESG रिपोर्टिंग:
    • अब कंपनियों को अपनी ESG रिपोर्टिंग (Environmental, Social, Governance) में पारदर्शिता रखनी होगी।

ग्रीनवाशिंग के विरुद्ध उपाय (Measures to Curb Greenwashing)

क्षेत्र

आवश्यक कदम

नीति स्तर पर

स्पष्ट परिभाषाएँ और मानक तय किए जाएँ कि “ग्रीन” या “सस्टेनेबल” का अर्थ क्या है।

निगरानी एवं प्रमाणन

स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा प्रमाणन (Third-party verification)।

पारदर्शी रिपोर्टिंग

कंपनियों की ESG रिपोर्ट्स का नियमित ऑडिट।

उपभोक्ता शिक्षा

जनता को यह सिखाया जाए कि “Green Claims” की सच्चाई कैसे परखें।

दंडात्मक प्रावधान

झूठे पर्यावरणीय दावों पर जुर्माना और लाइसेंस निलंबन।

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