चर्चा में क्यों ?
- आज के डिजिटल युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने केवल तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्रों तक सीमित रहना बंद कर दिया है।
- यह न्यायपालिका और कानून लागू करने के क्षेत्रों में भी तेजी से प्रवेश कर रहा है।
- मशीन लर्निंग (ML), नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP), ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR), और प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग न्यायिक प्रक्रियाओं, कानूनी शोध और कानून लागू करने के लिए किया जा रहा है।

- AI की मदद से न्यायपालिका के कामकाज को अधिक पारदर्शी, तेज़ और प्रभावी बनाया जा सकता है।
- वहीं, कानून प्रवर्तन में अपराध रोकथाम, अपराधियों की पहचान और जांच प्रक्रिया को अधिक वैज्ञानिक और सटीक बनाने में AI सहायक सिद्ध हो रहा है।
महत्व :-
न्यायपालिका का आधुनिकीकरण

केस प्रबंधन और न्यायिक दक्षता
AI न्यायपालिका के कार्यों की दक्षता बढ़ाता है। डिजिटल तकनीक को अपनाने में तेजी लाता है और मानव संसाधनों पर बोझ कम करता है। ई-कोर्ट के तीसरे चरण में AI का व्यापक उपयोग देखा जा रहा है, जैसे:
- स्वचालित केस प्रबंधन – केस की प्राथमिकता तय करना और लंबित मामलों की निगरानी।
- कानूनी अनुसंधान – सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के फैसलों का विश्लेषण।
- देरी / स्थगन का पूर्वानुमान – संभावित बाधाओं और लंबित मामलों के कारणों का अनुमान।
- केस विश्लेषण – केस के प्रारंभिक दस्तावेज़ों का अध्ययन और संभावित निर्णयों की पहचान।
उदाहरण के लिए, SUPACE (Supreme Court Portal for Assistance in Courts Efficiency) पोर्टल सुप्रीम कोर्ट में केस फाइलिंग और संबंधित डेटा का विश्लेषण करके न्यायिक अधिकारियों को निर्णय लेने में सहायक बनता है।
कानूनी विषयों का अनुवाद और डिजिटल पहुँच
सभी न्यायिक दस्तावेज़ और फैसलों तक आम जनता की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए AI आधारित अनुवाद सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। उदाहरण:
- SUVAS (Supreme Court Legal Translation Software) – सुप्रीम कोर्ट के 31,000 से अधिक फैसलों का 16 भाषाओं में अनुवाद।
- e-SCR पोर्टल – AI द्वारा अनुवादित फैसलों तक डिजिटल पहुँच प्रदान करता है।
इस प्रकार AI न केवल न्यायपालिका को आधुनिक बनाता है, बल्कि लोगों तक न्याय तक पहुँच को भी आसान बनाता है।
कानून लागू करना और अपराध की रोकथाम
प्रेडिक्टिव पुलिसिंग
- AI कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपराध की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।
- अपराध पैटर्न का विश्लेषण करके अधिक अपराध वाले क्षेत्रों और संभावित अपराधियों की पहचान की जा सकती है।
- इससे पुलिस अपनी रणनीतियाँ पूर्वानुमान आधारित तैयार कर सकती है।
AI-संचालित सर्विलांस
- ड्रोन और सीसीटीवी निगरानी – अपराध स्थल की रीयल टाइम निगरानी।
- फेसियल रिकॉग्निशन सिस्टम – NCRB द्वारा विकसित NAFRS (National Automated Facial Recognition System) और ABHED (AI Based Human Face Detection) एप्लीकेशन राजस्थान और पंजाब पुलिस द्वारा उपयोग में हैं।
डिजिटल साक्ष्य और फोरेंसिक विश्लेषण
AI आधारित फोरेंसिक उपकरण अपराध स्थल से डिजिटल साक्ष्य इकट्ठा और विश्लेषित करते हैं।
- वॉइस रिकग्निशन सिस्टम – FIR दर्ज करने में सहायता।
- ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) – क्राइम-सीन का डिजिटल पुनर्निर्माण।
- राष्ट्रीय प्रणालियों के साथ एकीकरण – CCTNS, e-जेल और e-फोरेंसिक सिस्टम AI के साथ जुड़कर अपराध की ट्रैकिंग और जांच एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करते हैं।
इस तरह AI कानून प्रवर्तन को वैज्ञानिक, तेज़ और कम समय में प्रभावी बनाता है।
न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन में AI अपनाने की चुनौतियां
डेटा की गुणवत्ता और एल्गोरिदम पूर्वाग्रह
AI मॉडल केवल उतने अच्छे हैं जितना डेटा जिस पर उन्हें प्रशिक्षित किया गया है। खराब या पूर्वाग्रह युक्त डेटा से अनुचित और अप्रत्याशित परिणाम निकल सकते हैं।
- पश्चिमी देशों में AI मॉडल ने अश्वेत लोगों और महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह दिखाया है।
- भारत में डिजिटल डिवाइड के कारण दूरदराज के और गरीब समुदायों को न्याय प्रक्रिया में बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
पारदर्शिता और ब्लैक बॉक्स मॉडल
AI एल्गोरिदम अक्सर ब्लैक बॉक्स होते हैं – यानी उनके निर्णयों के पीछे का तर्क स्पष्ट नहीं होता।
- यह न्यायिक और पुलिसिंग निर्णयों में कानूनी चुनौती पैदा कर सकता है।
- अपारदर्शिता जनता का विश्वास कम कर सकती है।
नैतिकता, कानून और निजता
AI का उपयोग अक्सर निजता के अधिकार और नैतिकता से जुड़े सवाल खड़े करता है।
- जवाबदेही की कमी।
- अस्पष्ट कानूनों के कारण जोखिम।
- गलत डेटा या मॉडल पर आधारित निर्णयों से न्याय में देरी और गलत फैसले।
क्षमता और विरोध
AI अपनाने में तकनीकी विशेषज्ञता और वित्तपोषण की कमी भी बड़ी बाधा है।
- अधिकारियों और कर्मचारियों में नौकरी छूटने का डर।
- नई तकनीक पर अविश्वास।
- प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश की आवश्यकता।
AI के सकारात्मक प्रभाव और भविष्य
न्यायिक पारदर्शिता और प्रभावी कानून प्रवर्तन
AI न केवल कार्यदक्षता बढ़ाता है, बल्कि न्याय की पारदर्शिता और जवाबदेही को भी मजबूत करता है।
- केस रिकॉर्ड सुरक्षित रखने में ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल।
- AI एनालिटिक्स के माध्यम से लंबित मामलों और फैसलों का पूर्वानुमान।
- साइबर सुरक्षा बढ़ाकर डिजिटल अपराध की रोकथाम।
कानूनी अनुसंधान में सुधार
- न्यायाधीशों और वकीलों के लिए केस कानून और फैसलों की तेज़ और सटीक पहुँच।
- अलग-अलग भाषाओं और क्षेत्रों के फैसलों का त्वरित विश्लेषण।
अपराध की रोकथाम और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स
- अपराधियों और अपराध क्षेत्रों की पहचान करके पुलिसिंग को प्रभावी बनाना।
- AI आधारित डिजिटल निगरानी, फोरेंसिक और फेस रिकॉग्निशन प्रणाली से अपराध की तीव्र प्रतिक्रिया।
शिक्षा और प्रशिक्षण
AI के माध्यम से न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन कर्मचारियों को डिजिटल और तकनीकी प्रशिक्षण देकर दक्षता बढ़ाई जा सकती है।
निष्कर्ष
न्यायपालिका और कानून लागू करने में AI का भविष्य अत्यंत उज्जवल है, लेकिन इसके साथ चुनौतियां भी हैं। डेटा की सुरक्षा, एल्गोरिदम की पारदर्शिता, नैतिकता, कानूनी और सामाजिक मानदंडों का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
AI अपनाने से भारत की न्याय प्रणाली में निम्नलिखित सकारात्मक बदलाव संभव हैं:
- न्यायिक दक्षता में वृद्धि – लंबित मामलों की संख्या कम होगी और केस निपटान तेज होगा।
- सभी तक न्याय का समान पहुँच – फैसलों का बहुभाषीय अनुवाद।
- कानून प्रवर्तन में प्रभावशीलता – अपराध का पूर्वानुमान, तेज़ जांच और डिजिटल निगरानी।
- पारदर्शिता और जवाबदेही – AI एनालिटिक्स से न्यायिक निर्णयों में सुधार।
- साइबर सुरक्षा और डिजिटल साक्ष्य – डिजिटल फोरेंसिक और सुरक्षित रिकॉर्डिंग।
सारांश में, AI न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, न्यायपूर्ण और समयोचित बनाने में सक्षम है। हालांकि, डेटा सुरक्षा, नैतिकता, पारदर्शिता और तकनीकी क्षमता के मामले में चुनौतियों को हल करना आवश्यक है। यदि इन बाधाओं को पार किया जाए तो AI भारतीय न्याय व्यवस्था और कानून प्रवर्तन में क्रांति ला सकता है।
प्रश्न :-SUPACE पोर्टल का उपयोग किस लिए किया जाता है ?
(a) अपराधियों की निगरानी
(b) केस फाइलिंग और डेटा का विश्लेषण
(c) डिजिटल साक्ष्यों का संग्रह
(d) न्यायिक फैसलों का बहुभाषीय अनुवाद
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