(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2: जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास व प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) आज वैश्विक स्तर पर गंभीर चुनौती के रूप में उभर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। आत्महत्या (Suicide) युवाओं में मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुकी है, जो समाज एवं नीति-निर्माताओं के लिए गहरी चिंता का विषय है।
WHO की मानसिक स्वास्थ्य पर रिपोर्ट
- WHO ने दो रिपोर्ट्स ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे’ और ‘मेंटल हेल्थ एटलस 2024’ जारी किया है।
- ये कोविड-19 महामारी के बाद की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तैयार की गई पहली व्यापक रिपोर्ट हैं।
- रिपोर्ट में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों, उनके प्रसार एवं आत्महत्या की बढ़ती दर पर विशेष जोर दिया गया है।
मुख्य निष्कर्ष
- विश्वभर में 1 अरब से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं।
- हर 100 मौतों में 1 के लिए आत्महत्या जिम्मेदार है। वर्ष 2021 में 7.27 लाख लोगों ने आत्महत्या की है।
- हर एक आत्महत्या के पीछे औसतन 20 आत्महत्या के प्रयास होते हैं।
- चिंता (Anxiety) और अवसाद (Depression) सबसे सामान्य मानसिक रोग हैं जो कुल मामलों के दो-तिहाई हिस्से तक पहुँचते हैं।
- वर्ष 2011 से 2021 के बीच मानसिक रोगियों की संख्या वैश्विक जनसंख्या वृद्धि से तेज़ी से बढ़ी।
- 20-29 वर्ष की आयु वर्ग में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की वृद्धि सर्वाधिक (1.8%) पाई गई।
- लिंग-आधारित अंतर भी सामने आया है; पुरुषों में ADHD एवं ऑटिज़्म अधिक, जबकि महिलाओं में चिंता, अवसाद व खानपान विकार अधिक पाए गए।
- 40 वर्ष की आयु के बाद अवसाद की समस्या अधिक गंभीर हो जाती है।
रिपोर्ट का महत्व
- यह रिपोर्ट बताती है कि मानसिक स्वास्थ्य केवल चिकित्सीय विषय नहीं है बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से भी गहरा प्रभाव डालती है।
- यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) से भी संबद्ध है, विशेषकर 2030 तक आत्महत्या दर में एक-तिहाई कमी लाने के लक्ष्य से।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
- 30 करोड़ से अधिक भारतीय किसी-न-किसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त हैं (NIMHANS रिपोर्ट)।
- आत्महत्या युवाओं (15–29 वर्ष) में मृत्यु का प्रमुख कारण है।
- भारत में हर वर्ष लगभग 2 लाख आत्महत्याएँ दर्ज होती हैं।
- ग्रामीण और छोटे शहरों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बेहद कम है।
भारत में चुनौतियाँ
- संस्थागत कमी : मानसिक अस्पतालों की संख्या और बिस्तरों की उपलब्धता बेहद सीमित है।
- फंडिंग की कमी : स्वास्थ्य बजट का केवल 1-2% ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च होता है।
- विशेषज्ञों की कमी : भारत में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर केवल 0.3 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं।
- कलंक एवं सामाजिक दृष्टिकोण : मानसिक बीमारियों को अब भी ‘पागलपन’ या कमजोरी के रूप में देखा जाता है।
- दवाइयों और सेवाओं तक पहुँच : छोटे कस्बों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में न तो विशेषज्ञ मिलते हैं और न ही आवश्यक दवाइयाँ।
- आर्थिक बोझ : मरीज प्रायः परिवार पर निर्भर हो जाते हैं और इलाज पर होने वाला व्यय कठिनाई पैदा करता है।
सरकारी प्रयास
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP, 1982) : प्राथमिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ देने का लक्ष्य
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 : आत्महत्या के प्रयास को अपराध की बजाय स्वास्थ्य समस्या माना गया।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014 : रोकथाम, उपचार एवं पुनर्वास पर फोकस
- टेली-मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ (Tele-MANAS, 2022) : टेलीफोनिक परामर्श और मानसिक स्वास्थ्य सहायता हेल्पलाइन
- आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र : मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचे में शामिल करने का प्रयास
आगे की राह
- स्वास्थ्य बजट में मानसिक स्वास्थ्य का हिस्सा बढ़ाना
- हर जिला अस्पताल में मानसिक स्वास्थ्य विंग की स्थापना करना
- मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक एवं काउंसलर की संख्या बढ़ाना और ग्रामीण स्तर तक पहुँच सुनिश्चित करना
- डिजिटल प्लेटफॉर्म और टेलीमेडिसिन का अधिक उपयोग करना
- स्कूल एवं कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और नियमित काउंसलिंग को अनिवार्य करना
- सामाजिक कलंक को समाप्त करने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाना