(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक राजनीतिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 : कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।) |
संदर्भ
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 29 मई 2025 को 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए 15 अक्टूबर 2024 के सरकारी आदेश को रद्द कर दिया।
- इन मामलों में वर्ष 2022 के हुबली दंगों का मामला भी शामिल है, जिसमें भीड़ ने पुलिस कर्मियों पर हमला किया था।
- न्यायालय के अनुसार, यदि इस सरकारी आदेश को बरकरार रखा गया तो यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-321 के उद्देश्य और भावना के विपरीत काम करेगा, कानून के शासन को नकारेगा और अंततः जनहित के खिलाफ काम करेगा।
अभियोजन से वापसी के बारे में
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सी.आर.पी.सी.) की धारा 321 (अब बी.एन.एस.एस. की धारा 360) अभियोजन से वापसी (Withdrawal from Prosecution) की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है।
- यह धारा लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक को किसी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन को, चाहे सामान्य रूप से या किसी विशेष अपराध के संबंध में, वापस लेने की शक्ति प्रदान करती है।
- यह प्रक्रिया केवल न्यायालय की सहमति से और निर्णय सुनाए जाने से पहले ही संभव है।
- यह प्रावधान आपराधिक न्याय प्रणाली में लोक अभियोजक की भूमिका और कार्यकारी शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक हित और न्याय की रक्षा करना है।
अभियोजन से वापसी की शर्तें
धारा 321 के अनुसार, लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक, जो किसी मामले के प्रभारी हैं, निम्नलिखित शर्तों के साथ अभियोजन से वापस ले सकते हैं:
- न्यायालय की सहमति: अभियोजन से वापसी के लिए न्यायालय की अनुमति अनिवार्य है।
- समय-सीमा: यह प्रक्रिया निर्णय सुनाए जाने से पहले किसी भी समय की जा सकती है।
- परिणाम
- यदि आरोप पत्र तैयार होने से पहले वापसी होती है, तो अभियुक्त को संबंधित अपराधों के लिए मुक्त कर दिया जाता है।
- यदि आरोप पत्र तैयार होने के बाद या जब आरोप पत्र की आवश्यकता नहीं होती, तो अभियुक्त को बरी कर दिया जाता है।
- केंद्र सरकार की अनुमति: कुछ मामलों में, जैसे कि केंद्रीय कानूनों से संबंधित अपराध, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना द्वारा जांच किए गए मामले, या केंद्र सरकार के कर्मचारी द्वारा किए गए अपराध, केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है।
अभियोजन से वापसी का आधार
- धारा 321 में अभियोजन से वापसी के लिए कोई विशिष्ट आधार निर्धारित नहीं किए गए हैं।
- हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि वापसी का निर्णय सार्वजनिक हित और न्याय के व्यापक उद्देश्यों को पूरा करना चाहिए।
- कुछ सामान्य आधार निम्नलिखित हो सकते हैं:
- साक्ष्य की कमी: यदि अभियोजन के पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं, तो आगे की कार्यवाही व्यर्थ हो सकती है।
- सार्वजनिक हित: सामाजिक, आर्थिक, या राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर, जैसे सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना।
- नीतिगत निर्णय: सरकार द्वारा अभियोजन को समाप्त करने का निर्णय, यदि यह व्यापक जनहित में हो।
अभियोजन से वापसी की प्रक्रिया
- लोक अभियोजक की भूमिका: केवल वही लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक, जो मामले के प्रभारी हैं, वापसी के लिए आवेदन कर सकते हैं। निजी शिकायत के मामलों में यह लागू नहीं होता।
- न्यायालय की भूमिका: न्यायालय का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि वापसी का निर्णय सुचिंतित और न्याय के हित में हो। न्यायालय को यह जांचना होता है कि आवेदन में कोई अनुचित मंशा या कार्यकारी हस्तक्षेप तो नहीं है।
- पीड़ित का स्थान: धारा 321 पीड़ित या तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के बारे में मौन है। हालांकि, हाल के निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने पीड़ित को सुनवाई का अवसर देने की आवश्यकता पर बल दिया है, विशेष रूप से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.) की धारा 360 में।
चुनौतियां
- कार्यकारी हस्तक्षेप: लोक अभियोजक और राज्य सरकार के बीच एजेंट-प्रिंसिपल संबंध के कारण, सरकार द्वारा अनुचित दबाव की संभावना रहती है।
- एजेंट-प्रिंसिपल संबंध : एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ एक व्यक्ति या संस्था (प्रिंसिपल) किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था (एजेंट) को अपनी ओर से कार्य करने के लिए नियुक्त करता है।
- न्यायालय की स्वतंत्रता: धारा 321 में स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी के कारण, न्यायालयों को व्यापक विवेकाधीन शक्तियां प्राप्त हैं, जिससे निर्णयों में असंगति हो सकती है।
- पीड़ित के अधिकार: पीड़ित को सुनवाई का अवसर प्रदान करने की प्रक्रिया अभी भी पूर्ण रूप से स्थापित नहीं है, जिससे उनके हित प्रभावित हो सकते हैं।
- दुरुपयोग की संभावना: राजनीतिक या अन्य गैर-न्यायिक कारणों से अभियोजन वापसी का दुरुपयोग हो सकता है, जिससे न्याय प्रणाली पर जनता का विश्वास कम हो सकता है।
लाभ
- सार्वजनिक हित की रक्षा: अभियोजन से वापसी सामाजिक सौहार्द, शांति, और सार्वजनिक व्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है।
- न्यायिक संसाधनों का संरक्षण: कमजोर मामलों को समाप्त करके न्यायालयों का समय और संसाधन बचाए जा सकते हैं।
- लचीलापन: यह प्रावधान कार्यकारी और अभियोजन को परिस्थितियों के आधार पर लचीला निर्णय लेने की अनुमति देता है।
वर्तमान स्थिति
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.), 2023 की धारा 360 ने धारा 321 को प्रतिस्थापित किया है, जिसमें कुछ बदलाव किए गए हैं। विशेष रूप से, पीड़ित को सुनवाई का अवसर देने वाला एक नया प्रावधान जोड़ा गया है।
- इसके अलावा, केंद्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता को और स्पष्ट किया गया है। हालांकि, अभियोजन से वापसी के दुरुपयोग की आलोचना बनी हुई है, विशेष रूप से राजनीतिक प्रभाव के कारण।
आगे की राह के लिए सुझाव
- स्पष्ट दिशानिर्देश: धारा 321/360 में अभियोजन से वापसी के लिए विशिष्ट आधार और दिशानिर्देश निर्धारित किए जाएं।
- पीड़ित के अधिकार: पीड़ित को सुनवाई का अनिवार्य अवसर प्रदान करने के लिए कानून में स्पष्ट प्रावधान हो।
- न्यायिक समीक्षा: अभियोजन से वापसी के निर्णयों की स्वतंत्र न्यायिक समीक्षा को अनिवार्य किया जाए।
- लोक अभियोजक की स्वतंत्रता: लोक अभियोजक को कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रखने के लिए नियुक्ति और कार्यप्रणाली में सुधार किए जाएं।
विभिन्न समितियों और आयोगों की सिफारिशें
- 197वां विधि आयोग प्रतिवेदन: लोक अभियोजकों की नियुक्ति में स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई, ताकि राजनीतिक प्रभाव कम हो।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय: श्योनंदन पासवान बनाम बिहार राज्य (1987) और केरल राज्य बनाम के. अजित (2021) जैसे मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने पर बल दिया कि अभियोजन से वापसी केवल सार्वजनिक हित और न्याय के लिए हो।
निष्कर्ष
धारा 321 आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो लोक अभियोजक को अभियोजन से वापसी का अधिकार देता है। हालांकि, इसका दुरुपयोग और कार्यकारी हस्तक्षेप की संभावना इसे विवादास्पद बनाती है। स्पष्ट दिशानिर्देश, पीड़ित के अधिकारों का संरक्षण, और लोक अभियोजक की स्वतंत्रता सुनिश्चित करके इस प्रावधान को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाया जा सकता है।