(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता व जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष) |
संदर्भ
18 जुलाई, 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर ‘इन-हाउस कमेटी’ की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने का अनुरोध किया है। इस याचिका में जस्टिस वर्मा का नाम नहीं है बल्कि सर्वोच्च न्यायालय की डायरी में इसे ‘XXX बनाम भारत सरकार व अन्य’ के शीर्षक से दर्ज किया गया है।
क्या है जस्टिस वर्मा कैश विवाद
- दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के लुटियंस स्थित आवास पर मार्च में आग लगी थी। इसे अग्निशमन विभाग के कर्मियों ने बुझाया था। घटना के वक्त जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे।
- बाद में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि जस्टिस वर्मा के घर से 15 करोड़ कैश मिला था, जिसमें काफी नोट जल गए थे।
आतंरिक जांच समिति का गठन
- 22 मार्च को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की आतंरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई।
- जांच समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधवालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश अनु शिवरामन थीं।
- पैनल ने 4 मई को CJI को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया था।
- 19 जून को सर्वोच्च न्यायालय के पैनल की सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में कहा गया कि जस्टिस यशवंत वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर सीक्रेट या एक्टिव कंट्रोल था।
- रिपोर्ट में कहा गया था कि आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं और जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए कार्यवाही शुरू करने के लिए आरोप पर्याप्त गंभीर हैं।
जांच समिति रिपोर्ट की मुख्य बातें
- चश्मदीदों द्वारा जले नोट देखना : 10 चश्मदीदों ने आधी जली हुई नकदी देखी। इनमें दिल्ली फायर सर्विस एवं पुलिस अधिकारी थे।
- जस्टिस वर्मा द्वारा खंडन न करना : इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (स्टोर रूम के वीडियो-फोटो) चश्मदीदों के बयानों की पुष्टि करते हैं, जिनका जस्टिस वर्मा ने खंडन नहीं किया।
- घरेलू कर्मचारियों द्वारा नोट निकालना : जस्टिस वर्मा के दो घरेलू कर्मचारियों ने स्टोर रूम से जले हुए नोट निकाले थे। वायरल वीडियो से दोनों की आवाज मैच हुई है।
- गलत बयान : जस्टिस वर्मा की पुत्री ने वीडियो के बारे में गलत बयान दिया। कर्मचारी की आवाज पहचानने से इनकार कर दिया, जबकि कर्मचारी ने खुद स्वीकार किया था कि आवाज उसकी है।
- सुरक्षा : परिवार की अनुमति के बिना कोई भी घर में आ-जा नहीं सकता था, इसलिए एक जज के स्टोर रूम में नोट रखना लगभग असंभव है।
- पुलिस में रिपोर्ट न करना : जस्टिस वर्मा ने स्टोर रूम से कैश मिलने की घटना को षड्यंत्र कहा किंतु पुलिस में कोई रिपोर्ट नहीं की। जस्टिस वर्मा इसका हिसाब देने में असमर्थ थे।
महाभियोग की सिफारिश
- रिपोर्ट के आधार पर ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत CJI खन्ना ने सरकार से जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी।
- केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है।
- वर्तमान में जस्टिस वर्मा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय से उनका ट्रांसफर कर दिया गया था। हालांकि, उन्हें किसी भी तरह का न्यायिक कार्य सौंपने पर रोक है।
महाभियोग प्रक्रिया
- किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है।
- प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा में कम-से-कम 50 सदस्यों को इस पर हस्ताक्षर करने होंगे और लोकसभा में 100 हस्ताक्षरित सदस्यों को इसका समर्थन करना होता है।
- जब प्रस्ताव दो-तिहाई मतों से पारित हो जाता है तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति CJI से एक जांच समिति के गठन का अनुरोध करते हैं।
- जांच समिति में तीन सदस्य होते हैं- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सरकार की तरफ से नामित कोई न्यायविद कार्यवाही शुरू करते हैं।
जस्टिस वर्मा का पक्ष
- जस्टिस वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका में इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने का अनुरोध किया है।
- जस्टिस वर्मा के अनुसार नोटों की बरामदगी पर समिति को इन 5 सवालों के जवाब देने चाहिए थे-
- बाहरी हिस्से में नकदी कब, कैसे और किसने रखी?
- कितनी नकदी रखी गई थी?
- नकदी असली थी या नहीं?
- आग लगने का कारण क्या था?
- क्या याचिकाकर्ता किसी भी तरह से 15 मार्च, 2025 को ‘बची हुई नकदी’ को ‘हटाने’ के लिए जिम्मेदार था?
- जस्टिस वर्मा के मुताबिक, रिपोर्ट में इन सवालों के जवाब नहीं हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई दोष नहीं लगाया जा सकता है।
याचिका में जस्टिस वर्मा के मुख्य तर्क
- राष्ट्रपति को भेजी गई महाभियोग सिफारिश अनुच्छेद 124 एवं 218 का उल्लंघन है।
- न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि आंतरिक जांच से संसद को संविधान के अनुच्छेद 124 एवं 218 के तहत दी गई विशेष शक्तियां समाप्त हो जाती हैं, जिसके तहत न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत जांच के बाद विशेष बहुमत द्वारा समर्थित अभिभाषण के माध्यम से न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है।
- वर्ष 1999 की फुल कोर्ट बैठक में बनी इन-हाउस प्रक्रिया सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था है, न कि संवैधानिक या वैधानिक। इसे न्यायाधीश को पद से हटाने जैसे गंभीर निर्णय का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
- जांच समिति का गठन बिना औपचारिक शिकायत के सिर्फ अनुमानों और अप्रमाणित जानकारियों से किया। यह इन-हाउस प्रक्रिया के मूल उद्देश्य के ही खिलाफ है।
- 22 मार्च, 2025 को प्रेस विज्ञप्ति में आरोपों का सार्वजनिक उल्लेख किया। इससे मीडिया ट्रायल शुरू हो गया और उनकी प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचा।
- न साक्ष्य दिखाए गए, न आरोपों के खंडन का मौका दिया गया। मुख्य गवाहों से मेरी अनुपस्थिति में पूछताछ हुई। सी.सी.टी.वी. फुटेज को सबूत के तौर पर नहीं लिया गया।
- समिति ने नकदी किसने रखी, असली थी या नहीं, आग कैसे लगी जैसे मूल प्रश्नों को अनदेखा किया।
- समिति की रिपोर्ट अनुमानों एवं पूर्वधारणाओं पर आधारित थी, न कि किसी ठोस सबूत पर। यह गंभीर कदाचार सिद्ध करने के लिए अपर्याप्त है।
- जांच रिपोर्ट मिलने के कुछ ही घंटों में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इस्तीफा देने या महाभियोग का सामना करने की चेतावनी दी। पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया।
- पिछले मामलों में न्यायाधीशों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका मिला था। इस मामले में ऐसी परंपरा की अनदेखी हुई।