New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

आपराधिक सुधार कानून: एक मृगमरीचिका

(प्रारम्भिक परीक्षा; भारतीय राज्यतंत्र और शासन)
(मुख्य परीक्षा:, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

चर्चा में क्यों?

जुलाई, 2020 में गृह मंत्रालय द्वारा आपराधिक कानून में सुधार हेतु एक समिति का गठन किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • भारतीय दण्ड सहिंता (आई.पी.सी.) और इससे सम्बंधित कानून जैसे, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया सहिंता (सी.आर.पी.सी.), जिन्हें 19वीं सदी में अधिनियमित किया गया था लेकिन इनमें अभी तक कोई व्यापक संशोधन नहीं किये गए हैं।
    • 150 वर्ष पूर्व के ये कानून औपनिवेशिक सरकार के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे। मुख्यतः जिनमे भारतीय दण्ड सहिंता (आई.पी.सी.) और आपराधिक प्रक्रिया सहिंता (सी.आर.पी.सी.) को औपचारिक रूप दिया गया था, जिनमें अब भी औपनिवेशिक विचार निहित हैं।

सुधार की आवश्यकता

  • भारतीय दण्ड सहिंता, संविधान के आधारभूत मूल्य, जैसे स्वतंत्रता और समानता को सही मायनों में प्रतिविम्बित करने में असमर्थ हैं। अदालतों द्वारा समलैंगिकता (आर्टिकल-377) को अपराध की श्रेणी से हटाने में 150 वर्ष से अधिक लग गए। साथ ही आई.पी.सी. में अब भी ऐसे प्रावधान मौजूद हैं, जो महिलाओं की स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों को सीमित करते हैं।
  • आई.पी.सी. नए तथा आधुनिक अपराधों को उचित रूप में परिभाषित और सम्बोधित करने में असमर्थ है विशेष रूप से प्रौद्योगिकी आधारित और यौन शोषण से सम्बंधित अपराध तथा जुआ और सट्टेबाजी की सुविधा प्रदान करने वाली तकनीक।
  • वर्तमान में आपराधिक कानून में सुधार की प्रक्रिया संतोषजनक नहीं है। साथ ही यह अपारदर्शी और गैर समावेशी भी है। इसलिए यह गम्भीर चिंताओं को जन्म देता है।

समिति की आलोचना

  • समिति का प्रारूप व्यापक स्तर पर सार्वजानिक परामर्श प्रक्रिया के तहत नहीं लाया गया है।
  • सार्वजानिक परामर्श में भागीदारी के माध्यमों में केवल वेबसाइट का प्रयोग किया गया है, जबकि भारत की केवल 40% जनसंख्या सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग करती है।
  • समिति द्वारा सुझावों के लिये तैयार की गई प्रश्नावली लम्बी, पेचीदा और अत्यधिक शैक्षणिक प्रवृति की है, जो आम भारतीय की समझ से परे है।
  • भारतीय विधि आयोग की सभी रिपोर्ट तथा अन्य सम्बंधित दस्तावेज अंग्रेज़ी भाषा में जारी किये गए हैं, जबकि भारत की केवल 10% आबादी अंग्रेज़ी बोलती है तथा इनमें भी अधिकांशतः शहरों में निवास करती है।
  • आपराधिक कानून में सुधारों के रास्ते में आने वाली बाधाओं से निपटने हेतु तदर्थ समिति के गठन पर भी प्रश्नचिन्ह है। आमतौर पर कानून में सुधारों से सम्बंधित विषयों का कार्य विधि आयोग (Law Commission) को सौंपा जाता है।
  • प्रस्तावित आपराधिक कानून सुधार प्रक्रिया में हो रही जल्दबाज़ी पर भी प्रश्नचिन्ह है। समिति को तीन प्रमुख आपराधिक कानूनों जो 150 वर्षों से भी अधिक समय से लम्बित हैं उन्हें केवल 6 महीने के अन्दर परिवर्तित करने का कार्य क्यों सौंपा गया है। वह भी कोविड-19 महामारी संकट का सामना करते समय।

आगे की राह

  • मलिमथ समिति के सुधारों को लागू किया जाना चाहिये। ध्यातव्य है कि न्याय प्रणाली में सुधार हेतु न्यायमूर्ति वी.एस. मलिमथ समिति की अध्यक्षता में वर्ष 2000 में एक समिति गठित की गई थी।
  • समग्र प्रभावी सुधारों के लिये पुलिस, अभियोजन, न्यायपालिका और जेलों में एकसाथ सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
  • आपराधिक कानून निर्माण प्रक्रिया में विकेन्द्रीय रूप से खुले और व्यापक विचार विमर्श के लिये पर्याप्त समय दिया जाना चाहिये।
  • समाज के विभिन्न वर्गों विशेष रूप से हाशिये पर पहुँचे हुए समूह तथा अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले समूहों का सुधार की न्याय प्रणाली में उचित प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिये और सम्पूर्ण प्रक्रिया के दौरान उनके विचारों और सुझावों को दर्ज किया जाना चाहिये।
  • आपराधिक कानून सुधार प्रक्रिया के लिये निर्मित समीतियों की संरचना में सुधार हेतु तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। आवश्यक है कि भारत के विभिन्न हिस्सों से प्रतिष्ठित महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों, एल.जी.बी.टी., दिव्यांग, वकीलों और ज़मीनी कार्यकर्ताओं को शामिल करने के लिये समिति का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • पुलिस स्टेशन के पास भी बेहद सीमित संसाधन होते हैं। आपराधिक मामलों की गम्भीरता को लेकर उनकी प्राथमिकताएँ तय की जा सकती हैं। जैसे कई राज्यों ने साइबर अपराधों से निपटने हेतु अलग पुलिस स्टेशन की व्यवस्था की है। इसी प्रकार के प्रबंध दूसरे अपराधों के लिये भी किये जा सकते हैं।
  • किसी भी समस्या के समाधान हेतु हमें पहले समस्या को समझना होगा। अपराध रोकने के लिये आपराधिक न्याय प्रणाली में ही सुधार करने होंगे केवल पुलिस सुधार ही इसका एकमात्र विकल्प नहीं है। साथ ही आपराधिक न्याय प्रणाली की केवल एक कड़ी को दुरुस्त करने से काम नहीं चलेगा। इसमें व्यापक सुधारों से ही परिवर्तन सम्भव है।

निष्कर्ष

बेहतर कानून के निर्माण हेतु एक समावेशी, पारदर्शी और सार्थक सार्वजानिक परामर्श प्रक्रिया, लोकतंत्र के एक विचारशील संस्करण को लागू करने का एकमात्र व्यावहारिक तरीका है, जिसे अपनाया जाना आवश्यक है।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR