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डिजिटल मीडिया का विनियमन : समय की माँग

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन – अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका)
चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा सुदर्शन टीवी मामले में हेट स्पीच को लेकर एक हलफनामा दाखिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि वेब आधारित डिजिटल मीडिया का विनियमन समय की आवश्यकता है।

क्या है सुदर्शन टीवी मामला?

  • सुदर्शन टीवी के एक प्रोग्राम ने विदेशों में आतंकी गतिविधियों से जुड़े संगठनों की फंडिंग की सहायता से सिविल सेवाओं में घुसपैठ का आरोप लगाया है। इस सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएँ दायर कर कहा गया है कि यह प्रोग्राम इरादतन एक विशेष समुदाय को अपमानित करने के उद्देश्य से हेट स्पीच और सामग्री प्रसारित कर रहा है।
  • न्यायालय द्वारा इस मामले का अवलोकन करते हुए पाँच नागरिकों की समिति के गठन का निर्णय दिया गया था, जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से सम्बंधित मानकों पर अपने सुझाव प्रस्तुत करेंगे। तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने सरकार से भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के स्व-नियमन तंत्र (Self-Regulation Mechanism) में सुधार हेतु सुझाव मांगे हैं।

डिजिटल मीडिया

डिजिटल मीडिया डिजिटल सामग्री है, जिसे इंटरनेट या कम्प्यूटर नेटवर्क पर प्रसारित किया जा सकता है। इसमें टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो और ग्राफिक्स शामिल हो सकते हैं। किसी टी.वी. नेटवर्क, समाचार-पत्र, पत्रिका आदि से किसी वेबसाइट या ब्लॉग पर पोस्ट की जाने वाली सामग्रियाँ इस श्रेणी के अंतर्गत आती हैं। अधिकांश डिजिटल मीडिया एनालॉग डेटा को डिजिटल डेटा में अनुवाद करने पर आधारित हैं।

सरकार का पक्ष

  • सरकार का पक्ष है कि प्रिंट और टेलीविज़न मीडिया पहले से ही विनियमित है,लेकिन वर्तमान में डिजिटल मीडिया को विनियमित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसकी पहुँच अधिक व्यक्तियों तक है तथा यहाँ सामग्री के वायरल होने की अधिक सम्भावना होती है।
  • फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये भी डिजिटल मीडिया के विनियमन की आवश्यकता है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्व-नियमन

  • सरकार ने डिजिटल मीडिया के स्व-नियमन तंत्र ( Self-Regulation Mechanism) पर बल देते हुए कहा है कि यह तंत्र निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। हाल ही में कुछ ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म्स (नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम आदि) द्वारा स्व-नियमन तंत्र को अपनाया गया है।

डिजिटल मीडिया के विनियमन की चुनौतियाँ

  • डिजिटल मीडिया के विनियमन के सम्बंध में न्यायालय के समक्ष अभिव्यक्ति की स्वंत्रता तथा सामुदायिक गरिमा और हेट स्पीच के मध्य संतुलन स्थापित करने की मुख्य चुनौती है।
  • डिजिटल मीडिया में विदेशी फंडिंग भी एक प्रमुख चुनौती है। वर्तमान में इसके सम्बंध में पारदर्शिता का अभाव है।
  • कुछ प्रिंट मीडिया और टीवी मीडिया में संलग्न संस्थाएँ डिजिटल मीडिया में भी कार्य कर रही हैं, लेकिन वे डिजिटल मीडिया के नियमों के दायरे से बची हुई हैं।
  • हिंसा भड़काने वाली सामग्री पर पहले से ही नियम-कानून मौजूद हैं, लेकिन राजनैतिक प्रतिबद्धता के अभाव के चलते ये लागू नहीं हो पाते हैं।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अनुचित या भड़काऊ सामग्री की जाँच के सम्बंध में कोई सख्त कदम नहीं उठाते हैं, साथ ही इन प्लेटफॉर्म्स के लिये उत्तरदायित्व का भी अभाव है।

डिजिटल मीडिया को विनियमित करने हेतु सुझाव

  • डिजिटल मीडिया पर अनुचित सामग्री को हटाने सम्बंधी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करने पर सम्बंधित व्यक्ति, संस्था और प्लेटफॉर्म्स पर भारी जुर्माना तथा कठोर सज़ा का प्रावधान किया जाना चाहिये।
  • सामाजिक और राजनैतिक रूप से संवेदनशील संदेशों की निगरानी हेतु साइबर विभाग को आधुनिक तकनीक और उपकरण प्रदान किये जाने चाहिये।
  • फैक्ट चेक वेबसाइटों और यूनिटों की पहुँच के दायरे में विस्तार की आवश्यकता है, जिससे भ्रामक या गलत सूचना पर समय रहते लगाम लगाई जा सके।

निष्कर्ष

  • वर्तमान समय में डिजिटल मीडिया का विनियमन आवश्यक है। यह माध्यम अभिव्यक्ति की स्वंत्रता और सूचना के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का सम्मान करता है तथा उन्हें सुरक्षित भी करता है। लेकिन इस माध्यम द्वारा सार्वजनिक नैतिकता के उल्लंघन और घृणित तथा अपमानजनक सामग्री के प्रसार के सम्बंध में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के साथ ही कड़ी कार्यवाही का प्रावधान किया जाना चाहिये।
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