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जैव विविधता अभिसमय और कॉप-15

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ  

कनाडा के मॉन्ट्रियल में 7-19 दिसंबर के मध्य संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity : CBD) के कॉप-15 का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 196 देशों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। 

प्रमुख बिंदु

  • इस सम्मेलन को दो चरणों में आयोजित किया गया है। इसका पहला चरण 11 से 15 अक्तूबर 2021 के मध्य चीन में आभाषी रूप में संपन्न हुआ था जबकि दूसरा चरण मॉन्ट्रियल, कनाडा में आयोजित किया जा रहा है।
  • इस सम्मेलन का मुख्य विषय "पारिस्थितिक सभ्यता: पृथ्वी पर सभी के जीवन के लिये एक साझा भविष्य का निर्माण" (Ecological Civilization: Building a Shared Future for All Life on Earth) है। 
  • यह सम्मेलन मूल रूप से वर्ष 2020 में कुनमिंग, चीन में आयोजित किया जाना था लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे आयोजित नहीं किया जा सका था।

जैव विविधता अभिसमय 

  • यह कानूनी रूप से बाध्यकारी एक बहुपक्षीय संधि है। इस संधि पर जून 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुए पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर किये गए थे। 
  • इसके पश्चात् यह संधि दिसंबर 1993 से लागू हुई। इस अभिसमय के पक्षकारों के सम्मेलन (CoP) का पहला सत्र वर्ष 1994 में नासाओ, बहामास में आयोजित किया गया था। जबकि इस सम्मेलन की 14वीं बैठक (CoP-14) का आयोजन शर्म अल-शेख, मिस्र में वर्ष 2018 में किया गया था।
  • इस अभिसमय के तीन मुख्य लक्ष्य हैं- 
    • जैव विविधता का संरक्षण, 
    • जैव विविधता के घटकों का सतत् उपयोग तथा 
    • आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण। 

सी.बी.डी. के अंतर्गत दो प्रमुख प्रोटोकॉल  

  • सी.बी.डी. के दो प्रमुख समझौते- कार्टाजेना प्रोटोकॉल (Cartagena Protocal) और नागोया प्रोटोकॉल (Nagoya Protocol) हैं। 
  • जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसका उद्देश्य आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न जीवित संशोधित जीवों (Living Modified Organisms : LMO) के सुरक्षित संचालन, परिवहन और उपयोग को सुनिश्चित करना है। इसे वर्ष 2000 में अपनाया गया और वर्ष 2003 को लागू किया गया।
  • नागोया प्रोटोकॉल को आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों के उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अपनाया गया था। इसे वर्ष 2010 में अपनाया गया और वर्ष 2014 में लागू किया गया।

आइची लक्ष्य (Aichi Targets) 

  • जापान के नागोया में आयोजित सी.बी.डी. शिखर सम्मेलन के दौरान वर्ष 2010-20 तक के लिये ‘आइची लक्ष्यों’ को अपनाया गया था। गौरतलब है कि नागोया, जापान के आइची प्रांत में अवस्थित है।
  • इसके तहत कुल 20 लक्ष्यों को अपनाया गया, जिन्हें पाँच श्रेणियों में शामिल किया गया था: 
    • सरकार और समाज में जैव विविधता को मुख्यधारा में लाकर जैव विविधता के नुकसान के अंतर्निहित कारणों का समाधान करना, 
    • जैव विविधता पर प्रत्यक्ष दबाव कम करना और धारणीय उपयोग को बढ़ावा देना, 
    • पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियों और आनुवंशिक विविधता की रक्षा के माध्यम से जैव विविधता की स्थिति में सुधार करना, 
    • जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं से लाभ तक समान पहुँच सुनिश्चित करना, 
    • भागीदारी योजना, ज्ञान प्रबंधन और क्षमता निर्माण के माध्यम से कार्यान्वयन में वृद्धि करना। 
  • इसके अंतर्गत आने वाले दशक के दौरान वनों की कटाई को कम से कम आधे से कम करने, जैव विविधता संरक्षण को सुनिश्चित करने, लुप्तप्राय प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकने जैसे लक्ष्य शामिल थे ताकि पारिस्थितिक तंत्र को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

आइची लक्ष्य प्राप्ति की स्थिति 

  • वर्ष 2020 तक कम से कम 17% स्थलीय और अंतर्देशीय जल तथा 10% तटीय और समुद्री क्षेत्रों को संरक्षित किये जाने का लक्ष्य रखा गया था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में विश्व समुदाय द्वारा वर्तमान में लगभग 15% स्थलीय और 8% समुद्री क्षेत्र को किसी न किसी रूप में संरक्षित क्षेत्रों में शामिल कर लिया हैं। 
  • पक्षकारों द्वारा आइची लक्ष्यों को अपनाने के पश्चात् इन लक्ष्यों पर आधारित राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीतियों को तैयार किया गया था। लेकिन अधिकांश देशों द्वारा इसे कभी भी पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका। 
  • आइची लक्ष्यों के मूल्यांकन में पाया गया कि लगभग 10% लक्ष्यों में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है, जबकि छह लक्ष्यों को आंशिक रूप से प्राप्त किया गया है। 

आइची लक्ष्य प्राप्ति में विफलता के कारण 

  • आइची लक्ष्यों की प्रगति को मापने के लिये स्पष्ट रूप से परिभाषित पैमाने की कमी। 
  • आइची लक्ष्यों की मज़बूत निगरानी, रिपोर्टिंग और प्रभावी समीक्षा ढाँचे का अभाव।
  • पक्षकार देशों द्वारा आपस में अपनी प्रगति के बारे में अपडेट करने में विफलता। 
  • विकासशील देशों में वित्तपोषण की कमी। 

भारत में जैव विविधता अधिनियम

  • भारत में जैव विविधता के नुकसान को रोकने और जैव विविधता के संरक्षण के उद्देश्य से जैव विविधता अधिनियम, 2002 को अपनाया गया। 
  • सी.बी.डी. के अनुसरण में, इस अधिनियम द्वारा अन्य देशों की तरह भारत को भी अपने प्राकृतिक संसाधनों पर संप्रभु अधिकार की मान्यता प्राप्त हुई और इसने जैव संसाधनों के अन्य उपयोगकर्ता देशों को प्रतिबंधित किया। 
  • यह संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग को सुनिश्चित करता है तथा नियामक तंत्र के माध्यम से स्थानीय आबादी तक संसाधनों की पहुँच और लाभ-साझाकरण (Access and Benefit-Sharing: ABS) पर ज़ोर देता है। 
  • इसके तहत देश में त्रि-स्तरीय ढाँचे- राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य स्तर पर राज्य जैव विविधता बोर्ड (SSB) तथा स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का गठन किया गया।
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