(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3: विश्व भर के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला और कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश है जो आज भूजल संकट का सामना कर रहा है। भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपभोक्ता देश है, जो केवल कृषि के लिए ही लगभग 245 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) भूजल 2011 में निष्कर्षित कर चुका था जो वैश्विक भूजल खपत का लगभग 25% है। वर्ष 2023 में भारत ने उपलब्ध कुल भूजल का लगभग 60% निष्कर्षण किया जो संसाधनों के अनियंत्रित दोहन का स्पष्ट संकेत है।
भारत में भूजल संकट की वर्तमान स्थिति
- भूजल निकासी और पुनर्भरण : भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपभोक्ता है। वर्ष 2023 में देश का वार्षिक भूजल पुनर्भरण 449 अरब घन मीटर (BCM) था, जबकि निकासी 241 BCM थी, जोकि उपलब्ध भूजल का लगभग 60% है। इसमें से 87% कृषि, 11% घरेलू उपयोग और 2% औद्योगिक उपयोग के लिए है।
- अति-दोहन की स्थिति : रिपोर्ट के अनुसार 6,553 मूल्यांकन इकाइयों में से 11.2% ‘अति-दोहन’ (Over-exploited) की श्रेणी में हैं जहाँ निकासी की दर पुनर्भरण से अधिक है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ :
- पंजाब एवं हरियाणा : 100 इकाई पुनर्भरण के मुकाबले पंजाब में 164 इकाई और हरियाणा में 136 इकाई पानी का निष्कर्षण किया जा रहा है। पंजाब में 80% ब्लॉक अति-दोहन की स्थिति में हैं।
- भूजल में यूरेनियम, आर्सेनिक एवं फ्लोराइड जैसे हानिकारक तत्वों की मौजूदगी के कारण पानी पीने योग्य नहीं रहा है।
- उत्तर प्रदेश : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जल-गहन कृषि एवं शहरीकरण के कारण जल तालिका (Water Table) में 20 मीटर से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। राज्य में 100 इकाई पुनर्भरण के मुकाबले 71 इकाई पानी का निष्कर्षण किया जा रहा है।
- राजस्थान : सबसे शुष्क राज्य होने के नाते राजस्थान 100 इकाई पुनर्भरण के मुकाबले 149 इकाई पानी का निष्कर्षण कर रहा है। 249 में से 203 ब्लॉक ‘गंभीर’ या ‘अति-दोहन’ की श्रेणी में हैं।
- यहाँ फ्लोराइड एवं नमक की अधिकता से फ्लोरोसिस जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ रही हैं।
- महाराष्ट्र : मराठवाड़ा में बार-बार मानसून की विफलता और गन्ने जैसे जल-गहन फसलों ने जल तालिका को 90 मीटर तक नीचे पहुँचा दिया है। राज्य में 100 इकाई पुनर्भरण के मुकाबले 54 इकाई निकासी हो रही है।
- तमिलनाडु : वर्ष 2024 में 14.45 BCM भूजल निकाला गया, जिसमें से 13.51 BCM कृषि के लिए था। 313 में से 106 तालुका अति-दोहन की श्रेणी में हैं। चेन्नई जैसे शहरी क्षेत्र 127.5% पुनर्भरण की दर से भूजल निष्कर्षण कर रहे हैं।
- शहरी क्षेत्रों में संकट : शहरीकरण ने भूजल संकट को और गंभीर बना दिया है। उत्तर प्रदेश के 630 से अधिक शहरी स्थानीय निकाय भूजल पर निर्भर हैं। बेंगलुरु में 14,000 ट्यूबवेल्स में से आधे सूख चुके हैं और कुछ 450 मीटर गहरे हैं। चेन्नई में 51 में से 46 राजस्व ब्लॉक अति-दोहन की श्रेणी में हैं। कोलकाता एवं नागपट्टिनम में समुद्री जल के अंदर घुसने से भूजल खारा हो गया है।
भूजल संकट के कारण
भारत में भूजल संकट एक जटिल एवं गंभीर समस्या है जो विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय व नीतिगत कारकों के संयोजन से उत्पन्न हुई है। वर्ष 2023 के आँकड़ों एवं केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के आधार पर भूजल संकट के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
जल-गहन कृषि
- हरित क्रांति का प्रभाव : 1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए धान एवं गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों को बढ़ावा दिया। विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में धान की खेती ने भूजल पर अत्यधिक दबाव डाला।
- गन्ना एवं नकदी फसलें : उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में धान से भी अधिक पानी की आवश्यकता वाला गन्ना भूजल निकासी में वृद्धि कर रहा है।
- फसल चक्रण की कमी : धान एवं गेहूँ की एकल फसल (Monoculture) और कम पानी वाली फसलों (जैसे- बाजरा, दालें) को अपनाने की धीमी गति से भूजल संकट गहरा हो गया है।
बिजली सब्सिडी
- मुफ्त/सस्ती बिजली : पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में किसानों को मुफ्त या रियायती बिजली प्रदान की जाती है, जिसने ट्यूबवेल व बोरवेल की संख्या में वृद्धि की है। पंजाब में 1970 में 1.9 लाख ट्यूबवेल थे, जो 2023 तक 15 लाख हो गए।
- पानी का दुरुपयोग : सस्ती बिजली के कारण किसान जरूरत से अधिक पानी निकालते हैं। कुछ किसान मुफ्त बिजली कोटा का उपयोग करने या पानी बेचने के लिए पंप चलाते रहते हैं जिससे भूजल का अनावश्यक दोहन होता है।
अकुशल सिंचाई प्रथाएँ
- बाढ़ सिंचाई : भारत में अधिकांश किसान अभी भी बाढ़ सिंचाई (Flood Irrigation) का उपयोग करते हैं, जो पानी की बर्बादी का प्रमुख कारण है। इस विधि में केवल एक छोटा हिस्सा ही भूजल पुनर्भरण में योगदान देता है।
- खराब नहर प्रणाली : कई क्षेत्रों में नहरों का रखरखाव अपर्याप्त है जिसके कारण पानी रिसाव के माध्यम से बर्बाद होता है। इस वजह से किसान नहरों के बजाय ट्यूबवेल पर निर्भर रहते हैं।
नीतिगत एवं जलवायु कारक
- समर्थन मूल्य व खरीद नीतियाँ : सरकार की समर्थन मूल्य नीतियाँ और धान-गेहूँ की खरीद गारंटी ने जल-गहन फसलों को प्रोत्साहित किया है।
- जल संरक्षण प्रोत्साहन की कमी : जल-संरक्षण तकनीकों के लिए आर्थिक प्रोत्साहन सीमित हैं जबकि बिजली सब्सिडी व ऋण नीतियाँ ट्यूबवेल उपयोग को बढ़ावा देती हैं।
- कमजोर नियमन : केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने कुछ अति-दोहन वाले ब्लॉकों में नए कुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है किंतु वर्ष 2021 में विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 14% अति-दोहन वाले ब्लॉक अधिसूचित हैं। खेत स्तर पर नियमों का पालन कमजोर है।
- अनियमित मानसून : मराठवाड़ा एवं तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में अनियमित मानसून ने भूजल पुनर्भरण को प्रभावित किया है। तमिलनाडु में शुष्क मौसम में भूजल पर निर्भरता बढ़ जाती है।
आगे की राह
भारत में भूजल संकट से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें नीतिगत सुधार, तकनीकी हस्तक्षेप, सामुदायिक भागीदारी एवं पर्यावरणीय संरक्षण शामिल हों। निम्नलिखित उपाय भूजल संकट को कम करने और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायक हो सकते हैं:
- कम पानी वाली फसलों को प्रोत्साहन : धान व गन्ने जैसी जल-गहन फसलों के बजाय बाजरा, दालें, मक्का एवं अन्य कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा देना चाहिए।
- फसल चक्रण को बढ़ावा : एकल फसल (Monoculture) के बजाय फसल चक्रण को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि जल उपभोग कम हो और मृदा उर्वरता बनी रहे।
- सूक्ष्म सिंचाई का विस्तार : ड्रिप व स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को अपनाने के लिए किसानों को सब्सिडी एवं तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए। ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ के तहत ‘प्रति बूंद, अधिक फसल’ योजना ने 52 लाख हेक्टेयर में सूक्ष्म सिंचाई लागू की है, जिसे और बढ़ाना होगा।
- नहरों का रखरखाव : खराब नहर प्रणालियों के रिसाव को रोकने के लिए रखरखाव एवं आधुनिकीकरण पर ध्यान देना चाहिए।
- बिजली सब्सिडी पर नियंत्रण : मुफ्त या रियायती बिजली को सीमित कर ट्यूबवेल के बढ़ते उपयोग को कम किया जाना चाहिए।
- जल मूल्य निर्धारण : भूजल निकासी के लिए उचित मूल्य निर्धारण नीति लागू की जानी चाहिए ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके।
- पारंपरिक जल निकायों का पुनरुद्धार : तालाबों, झीलों व बावड़ियों जैसे पारंपरिक जल निकायों का रखरखाव एवं पुनरुद्धार किया जाना चाहिए, जैसा कि जल शक्ति अभियान के तहत 98 लाख संरचनाएँ बनाई गईं।
- सामुदायिक प्रबंधन : भूजल को एक साझा संसाधन के रूप में प्रबंधित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना होगा। राजस्थान एवं गुजरात में सामुदायिक प्रयासों से भूजल संरक्षण में सफलता मिली है।
- शहरी नियोजन : शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट एवं डामर के उपयोग को कम कर झीलों व हरे क्षेत्रों को संरक्षित करना चाहिए ताकि वर्षा जल पुनर्भरण बढ़े।
- जलवायु-अनुकूल कृषि : अनियमित मानसून व सूखे की स्थिति में कम पानी वाली एवं जलवायु-अनुकूल फसलों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- वनीकरण व मृदा संरक्षण : वन क्षेत्र बढ़ाने और मृदा कटाव को रोकने से भूजल पुनर्भरण में सुधार होगा। जल शक्ति अभियान के तहत वनावरण बढ़ाने के प्रयास जारी रखने चाहिए।
निष्कर्ष
भूजल संकट से निपटने के लिए भारत को जल-गहन फसलों से विविधीकरण, कुशल सिंचाई, सख्त नीतिगत सुधार, वर्षा जल संचयन एवं सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान देना होगा। अटल भूजल योजना, जल शक्ति अभियान व सूक्ष्म सिंचाई जैसी पहल सकारात्मक हैं किंतु इन्हें बड़े पैमाने पर और तेजी से लागू करना होगा। साथ ही, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जल प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण अपना करके ही दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित की जा सकती है।