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भारत में गहराता जल संकट

  (प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)

(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र : 3 ; विषय- संरक्षण, पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

भारत में विश्व की कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है, जबकि देश में  पीने योग्य जल संसाधनों का मात्र 4 प्रतिशत भाग ही उपलब्ध है। देश में अत्यधिक जल दोहन तथा अकुशल प्रबंधन के कारण भू-जल स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है। इसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में देश को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।

जल संकट का स्वरूप

  • वर्तमान में देश गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। इसके कारण लाखों लोगों का जीवन एवं आजीविका संकट में है।
  • नीति आयोग के अनुसार, वर्तमान में स्वच्छ जल की अपर्याप्त पहुँच के कारण लगभग 60 करोड़ भारतीय गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं तथा इसके कारण प्रतिवर्ष लगभग 2 लाख लोगों की मृत्यु होती है।
  • वर्ष 2030 तक देश में जल की मांग, आपूर्ति की दोगुनी होने की संभावना है। इससे देश में करोड़ों लोगों को जल के गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा तथा देश के सकल घरेलु उत्पाद में 6 प्रतिशत की हानि होने की संभावना है।
  • जल संसाधन मंत्रालय के एकीकृत जल संसाधन विकास के लिये राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च उपयोग परिदृश्य में वर्ष 2050 तक जल की आवश्यकता 1,180 अरब घन मीटर होने की संभावना है।
  • देश में जल की उपलब्धता वर्तमान में 1,137 अरब घन मीटर है। वर्ष 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी को पीने योग्य स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होगा। जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120 वें स्थान पर है और देश के लगभग 70 प्रतिशत जल स्रोत प्रदूषित हैं।

जल स्रोतों का वितरण : प्रयोग के आधार पर

  • ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का 80-90 प्रतिशत और कृषि कार्यों के लिये जल का लगभग 75 प्रतिशत भू-जल स्रोतों से लिया जाता है।
  • शहरी क्षेत्रों में जल आपूर्ति का 50-60 प्रतिशत भू-जल स्रोतों से जबकि शेष सतही जल संसाधनों, जैसे- नदियों, झीलों, जलाशयों इत्यादि से प्राप्त किया जाता है।
  • वर्ष 2019 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, 21 प्रमुख शहरों के भू-जल संसाधन समाप्त होने की कगार पर थे। इससे लगभग 100 मिलियन लोग प्रभावित हुए। इस सूचकांक के अनुसार वर्ष 2030 तक जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है।

जल संकट के प्रमुख कारण

  • बढ़ती जनसंख्या एवं नगरीकरण- बढ़ती जनसंख्या एवं नगरीकरण देश में बढ़ते जल संकट का एक प्रमुख कारण है। वर्ष 2001 में प्रतिव्यक्ति जल की उपलब्धता 1816 घन मीटर थी जो कि वर्ष 2011 में घटकर 1545 घन मीटर हो गई और वर्ष 2031 तक इसके घटकर 1367 घन मीटर होने की संभावना है।
  • जल-गहन फसलों की कृषि- देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 54 प्रतिशत भाग पर जल-गहन फसलों जैसे- चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास इत्यादि की कृषि की जाती है। सरकार द्वारा दिये जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण किसान इन फसलों की कृषि के लिये प्रेरित होते हैं।
  • जल का अकुशल प्रबंधन- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं के लिये प्रतिदिन 135 लीटर जल की आवश्यकता होती है जबकि भारत के कुछ बड़े शहरों जैसे- मुंबई, दिल्ली इत्यादि में शहरी विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बावजूद प्रति दिन प्रति व्यक्ति को 150 लीटर से अधिक जल दिया जाता है। भारत प्रति व्यक्ति जल की खपत के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है। यहाँ प्रति व्यक्ति प्रति दिन जल की खपत लगभग 250 लीटर है। इसका प्रमुख कारण जल की बर्बादी तथा औद्योगिक खपत है।

जल संरक्षण के लिये प्रयास

  • अटल भू-जल योजना- जल के अतिदोहन, अनियमित निष्कर्षण एवं अकुशल प्रबंधन के कारण भू-जल स्तर में आ रही गिरावट के मद्देनजर वर्ष 2019 में इस योजना को प्रारंभ किया गया था। इस योजना को भू-जल संसाधन प्रबंधन के लिये सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन लाने के उद्देश्य से पाँच वर्ष की अवधि (2020-21 से 2024-25) के लिये प्रारंभ किया गया है।
  • मनरेगा के अंतर्गत जल संरक्षण- मनरेगा ग्रामीण विकास के लिये समर्पित एक प्रमुख योजना है। यह योजना जल संरक्षण के प्रयासों को गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ा रही है। वर्ष 2014 में मनरेगा की अनुसूची 1 में किये गए परिवर्तन के बाद यह योजना जल सुरक्षा एवं जल संरक्षण के प्रयासों को प्रत्यक्ष रूप से बेहतर बना रही है। इसके अंतर्गत तालाब, कुँए, तटबंध, सोखते, चेक-डैम आदि का निर्माण किया जा रहा है।
  • कैच-द-रेन अभियान- 22 मार्च 2021 को विश्व जल दिवस के अवसर पर ‘जल शक्ति अभियान: कैच-द-रेन’ को प्रारंभ किया गया। यह अभियान 22 मार्च से 30 नवंबर 2021 ( मानसून पूर्व एवं मानसून अवधि) तक ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में चलाया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य जल संरक्षण एवं जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना तथा जागरूकता फैलाना है, ताकि वर्षा जल का उचित भण्डारण किया जा सके।
  • नदी जोड़ो परियोजना- वर्षा जल संचयन के साथ ही देश में नदी जल प्रबंधन के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं। हाल ही में प्रारंभ हुई केन-बेतवा लिंक परियोजना इसी का भाग है। यह समझौता अन्य राज्यों के मध्य भी ऐसी परियोजनाओं को साकार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
  • प्रति बूँद अधिक फसल- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के घटक के रूप में ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई प्रौद्योगिकियों तथा ड्रिप एवं स्प्रिंगकलर सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से जल उपयोग की क्षमता बढ़ाने तथा जल की बचत करने में सहायता मिलेगी।

निष्कर्ष

देश में जल संकट के समाधान के लिये सरकार द्वारा किये जा प्रयासों के साथ ही जन-मानस का सहयोग भी अपेक्षित है। इसके लिये जन-जागरूकता बढ़ाने के साथ ही ग्राम पंचायतों के अधिकारों को भी बढ़ाने की भी आवश्यकता है। भू-जल प्रबंधन, कुशल सिंचाई प्रबंधन एवं वर्षा जल संचयन उपायों को अपनाकर भविष्य के जल संकट को कम किया जा सकता है।

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