(प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी) |
संदर्भ
स्टैंनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा ‘सेल’ जर्नल (Cell Journal) में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि CAR-T सेल थेरेपी (CAR T-cell Therapy) मस्तिष्कीय कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है जिसे ‘ब्रेन फॉग’ के रूप में जाना जाता है।
क्या है ब्रेन फॉग
यह एक जटिल मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति को मानसिक स्पष्टता में कमी, भ्रम, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, स्मृति दोष एवं मानसिक थकान का अनुभव होता है। यह एक अस्थायी स्थिति है। हालाँकि, दीर्घकाल तक बने रहने पर यह जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
- अध्ययन के अनुसार, CAR-T थेरेपी के बाद रोगियों में स्मृति में कमी, एकाग्रता में कठिनाई, मंद संज्ञानात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली। यह प्रभाव हल्का होते हुए भी दीर्घकालिक हो सकता है और रोगियों के जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव डाल सकता है।
- इस प्रकार क्षति केवल मस्तिष्क कैंसर तक सीमित नहीं थी बल्कि त्वचा, रक्त एवं अस्थि जैसे शरीर के अन्य हिस्सों में स्थित ट्यूमर के मामलों में भी ब्रेन फॉग देखा गया।
- शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क की प्रतिरक्षा कोशिकाओं (माइक्रोग्लिया) को इस दुष्प्रभाव का मुख्य कारण बताया।
- यह भी बताया गया कि CAR-T से होने वाला ब्रेन फॉग उसी जैविक प्रक्रिया से संबंधित है जो कीमोथेरेपी, इन्फ्लुएंजा एवं कोविड-19 जैसे संक्रमणों के बाद भी देखी जाती है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली एवं न्यूरोइन्फ्लेमेशन के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है।
प्रमुख सुझाव
कैंसर रोगों में CAR-T थेरेपी की अपार संभावनाओं को देखते हुए अध्ययन में इन संज्ञानात्मक प्रभावों को उलटने (व्युत्क्रम करने) की रणनीति भी प्रस्तावित की गई है।
- मस्तिष्कीय सूजन को नियंत्रित करने वाली दवाएँ
- माइक्रोग्लिया की गतिविधि को विनियमित करने वाले लक्षित उपचार
- रोगी की पुनर्वास प्रक्रिया में संज्ञानात्मक थैरेपी का समावेश
CAR-T सेल थेरेपी के बारे में
- परिचय : CAR-T सेल थेरेपी (Chimeric Antigen Receptor T-cell Therapy) कैंसर उपचार की एक नवीनतम इम्यूनोथेरेपी तकनीक है जिसमें रोगी की अपनी प्रतिरक्षा कोशिकाओं (टी-सेल्स) को जेनेटिक रूप से संशोधित किया जाता है ताकि वे कैंसर कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से पहचानकर नष्ट कर सकें।
- क्या होती है टी-सेल्स (T-cells) : टी-कोशिकाएँ शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) की एक प्रमुख एवं शक्तिशाली कोशिका होती हैं। ये श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBCs) का हिस्सा होती हैं और विशेष रूप से शरीर में संक्रमण या कैंसर जैसी असामान्य कोशिकाओं से लड़ने का कार्य करती हैं।
- प्रभावी : यह उपचार विशेष रूप से रक्त कैंसर (Acute Lymphoblastic Leukemia और Diffuse Large B-Cell Lymphoma) में प्रभावी पाया गया है।
- कार्यप्रणाली : यह प्रक्रिया विभिन्न चरणों में संपन्न होती है-
- टी-सेल्स संग्रहण (T-cell Collection) : रोगी के रक्त से एक विशेष प्रक्रिया (Leukapheresis) द्वारा टी-सेल्स एकत्रित किए जाते हैं।
- अनुवांशिक संशोधन (Genetic Modification) : इन टी-कोशिकाओं में एक कृत्रिम जीन डाला जाता है जो उन्हें एक काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) उत्पन्न करने की क्षमता देता है। यह CAR रिसेप्टर कैंसर कोशिकाओं पर मौजूद एक विशेष एंटीजन को पहचान सकता है।
- कोशिकाओं की वृद्धि (Cell Expansion) : संशोधित टी-कोशिकाओं को प्रयोगशाला में कई गुना बढ़ाया जाता है ताकि पर्याप्त संख्या में कोशिकाएँ उपलब्ध हो सकें।
- शरीर में पुनः प्रविष्टि (Infusion into Patient) : इन CAR-T कोशिकाओं को वापस मरीज के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है।
- कैंसर कोशिकाओं पर हमला (Targeting Cancer Cells): CAR-T कोशिकाएं अब शरीर में फैलकर उन कोशिकाओं को पहचानती हैं जिनमें लक्षित एंटीजन मौजूद होता है और उन्हें नष्ट कर देती हैं।
CAR-T थेरेपी की प्रमुख विशेषताएँ
- व्यक्तिगत उपचार (Personalized Therapy) : यह थेरेपी प्रत्येक मरीज के लिए व्यक्तिगत रूप से तैयार की जाती है।
- कृत्रिम रिसेप्टर (Chimeric Antigen Receptor- CAR) : टी-कोशिकाओं में एक कृत्रिम रिसेप्टर जोड़ा जाता है जो विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं पर मौजूद एक विशिष्ट एंटीजन को पहचानता है।
- दीर्घकालिक उत्तरजीविता की संभावना : कुछ मामलों में CAR-T थेरेपी से दीर्घकालिक एवं पूर्ण रोगमुक्ति देखी गई है ।
- एकल उपचार की आवश्कता : यह थेरेपी प्राय: एक बार दी जाती है और इसके प्रभाव दीर्घकाल तक बने रह सकते हैं जिससे मरीज को बार-बार कीमोथेरेपी या रेडिएशन की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि : शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अधिक शक्तिशाली बनाता है।
- अनुसंधान एवं विकास का क्षेत्र : यह तकनीक अभी शोध के अंतर्गत है और वैज्ञानिक इसे ठोस ट्यूमर (Solid Tumors) जैसे ब्रेन, स्तन या फेफड़े के कैंसर में प्रयोग करने के लिए कार्यरत हैं।
भारत में CAR-T थेरेपी की स्थिति
- आई.आई.टी. बॉम्बे एवं टाटा मेमोरियल सेंटर ने भारत की पहली स्वदेशी CAR-T थेरेपी का विकास किया है, जिसका नाम है ‘INCT-CLL-01’
- भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन के तहत समर्थन प्रदान किया है।
- यह उपचार अभी नैदानिक परीक्षणों के चरण में है किंतु इसका उद्देश्य लागत को कम करना और देश में उपचार की पहुंच बढ़ाना है।
निष्कर्ष
CAR-T सेल थेरेपी कैंसर उपचार में, विशेषतः रक्त कैंसर के मामलों में, क्रांति ला सकती है। हालाँकि, इसके दीर्घकालिक प्रभाव विशेषकर संज्ञानात्मक जटिलताएँ, जैसे- ब्रेन फॉग हमें इस चिकित्सा पद्धति की संपूर्णता को समझने और उसे अधिक सुरक्षित तथा सुलभ बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
CAR-T थेरेपी एवं पारंपरिक थेरेपी में अंतर
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बिंदु
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CAR-T थेरेपी
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पारंपरिक थेरेपी (कीमोथेरेपी/रेडियोथेरेपी)
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उपचार का प्रकार
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इम्यूनोथेरेपी (प्रतिरक्षा आधारित)
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रासायनिक (कीमो) या विकिरण आधारित
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लक्ष्य (Targeting)
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कैंसर कोशिकाओं को विशेषकर लक्षित करती है (Specific Targeting)
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स्वस्थ व कैंसर दोनों कोशिकाओं को प्रभावित करती है (Non-specific Targeting)
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वैयक्तिकरण (Personalization)
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मरीज की टी-सेल्स को अनुकूलित किया जाता है (व्यक्तिगत रूप से तैयार किया गया उपचार)
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सभी मरीजों को एक जैसे रसायन या विकिरण दिए जाते हैं
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प्रभावशीलता
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विशेष रूप से रक्त कैंसर (जैसे- ल्यूकेमिया, लिंफोमा) में अत्यधिक प्रभावी
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विभिन्न प्रकार के कैंसर में सीमित या अस्थायी प्रभाव
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स्थायित्व (Durability)
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अक्सर टी-सेल्स शरीर में लंबे समय तक सक्रिय रह सकती हैं
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बार-बार उपचार की आवश्यकता
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साइड इफेक्ट्स
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Cytokine Release Syndrome (CRS), न्यूरोलॉजिकल जटिलताएँ (लेकिन सीमित)
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बाल झड़ना, थकावट, उल्टी, संक्रमण, अंगों को क्षति
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