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पी.एम. केयर्स फण्ड: पारदर्शिता पर उठते प्रश्न चिन्ह

(प्रारम्भिक परीक्षा: सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था- पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा कहा गया है कि प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात स्थिति राहत कोष (पी.एम. केयर्स फण्ड) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा- 2 (एच) के तहत एक ‘सार्वजानिक प्राधिकरण’ (Public Authority) नहीं है। ऐसी स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 (Right To Information Act,2005) के तहत पी.एम. केयर्स फण्ड के सम्बंध में मांगी गई सूचना को साझा करने से मना कर दिया गया है।
  • एक आर.टी.आई. आवेदक द्वारा पी.एम. केयर्स फण्ड के नियमों से सम्बंधित जानकारी मांगी गई थी।

सार्वजानिक प्राधिकरण

  • आर.टी.आई. अधिनियम,2005 की धारा 2 (एच) के अनुसार, लोक प्राधिकरण को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार लोक प्राधिकरण ऐसे संस्थान को कहा जाएगा जिसका गठन-
    • संविधान द्वारा
    • संसद द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा
    • राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा
    • उपयुक्त सरकार (Appropriate Government) द्वारा जारी की गई अधिसूचना या आदेश द्वारा गठित कोई प्राधिकरण, निकाय या स्वायत्त सरकारी संस्था।
  • कोई निकाय जो उपयुक्त सरकार के स्वामित्त्व या नियंत्रण के अंतर्गत हो या उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित हो।
  • ऐसे सरकारी और गैर सरकारी संगठन जो उपयुक्त सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित हों।

पी.एम. केयर्स फण्ड

  • यह एक सार्वजानिक धर्मार्थ न्यास (Public Charitable Trust) है, जिसे कोविड-19 महामारी जैसी आपातकालीन या संकटकालीन स्थितियों से निपटने हेतु बनाया गया है।
  • इस कोष का उद्देश्य संकट की स्थिति (प्राकृतिक या मानवजनित) में पीड़ा को कम करने के साथ-साथ ढाँचागत सुविधाओं के नुकसान को कम करते हुए अवसंरचना तथा संस्थागत क्षमता के पुनर्निर्माण व विस्तार हेतु आवश्यक कदम उठाना है।
  • प्रधानमंत्री पी.एम. केयर्स फण्ड का पदेन अध्यक्ष होता है तथा अन्य सदस्यों में गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं।

निर्णय के प्रभाव

  • न्यास (ट्रस्ट) को लोक प्राधिकरण का दर्जा न दिये जाने से पारदर्शिता पर प्रश्न खड़े होने के साथ-साथ यह कदम लोकतांत्रिक मूल्यों के भी विरूद्ध है।
  • आर.टी.आई. के दायरे से बाहर होने के कारण यह भी स्पष्ट नहीं है कि पी.एम. केयर्स फण्ड नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा लेखा परीक्षा के अधीन आता है या नहीं।

सरकार का पक्ष

  • सरकार द्वारा पी.एम. केयर्स फण्ड को सार्वजानिक प्राधिकरण का दर्जा न दिये जाने के पीछे तर्क दिया गया है कि यह कोष स्वैच्छिक दान पर आधारित है, अतः यह फण्ड लेखा परीक्षा के तहत नहीं आता है।
  • सरकार द्वारा कहा गया है कि पी.एम. केयर्स फण्ड के बारे में आवश्यक एवं पर्याप्त जानकारी फण्ड की आधिकारिक वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है।
  • यह दान पर आधारित कोष है इसलिये नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को इसे ऑडिट करने का अधिकार नहीं है।

सरकार के कदम की आलोचना

  • इस न्यास का नामकरण, इसका गठन, चिन्ह (Emblem) का आवंटन आदि सरकार के द्वारा किया गया है। साथ ही, इस पर नियंत्रण भी सरकार का ही है। इन्हीं कारणों के चलते यह न्यास ‘लोक प्राधिकरण’ (Public Authority) की श्रेणी में आता है। अतः यह ऑडिट के दायरे में लाया जा सकता है।
  • पी.एम. केयर्स फण्ड का प्रबंधन पूर्णतः सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। साथ ही, इस कोष में बड़े स्तर पर सार्वजानिक उद्देश्यों हेतु धन एकत्रित किया जा रहा है। इन सब आधारों के मद्देनज़र कहा जाता है कि यह एक लोक प्राधिकरण है।

आगे की राह

पारदर्शिता किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का बुनयादी मूल्य है। इससे सरकार और जनता के मध्य विश्वास में मज़बूती आती है। सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह नागरिकों को अपने काम काज के सम्बंध में आवश्यक जानकरी मुहैया कराए। साथ ही, इस बात का भी पूर्णतः ध्यान रखा जाना चाहिये कि प्रदान की गई जानकारी से देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता पर किसी प्रकार की चुनौती उत्पन्न न हो।

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