New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र

(प्रारंभिक परीक्षा : कला और संस्कृति)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज,भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।)

चर्चा में क्यों

हाल ही में, भारत की दो महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहरों ‘श्रीमद्भगवद्गीता’और‘नाट्यशास्त्र’ की पाण्डुलिपियों को यूनेस्को की 'मैमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर' में शामिल किया गया है। 

यूनेस्को मैमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर के बारे में 

  • परिचय: ‘मैमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ (Memory of the World – MoW) यूनेस्को द्वारा वर्ष1992 में शुरू किया गया एक वैश्विक कार्यक्रम है। 
  • उद्देश्य: यूनेस्को के अनुसार दस्तावेजी धरोहर पूरी मानवता की है और उसे सभी के लिए संरक्षित और सुलभ होना चाहिए। इस कार्यक्रम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
    • सामूहिक स्मृति के लोप से बचाव
    • सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग द्वारा दस्तावेजों का संरक्षण
    • वैश्विक जनसमुदाय को इनका ज्ञान सुलभ कराना
  • शामिल प्रविष्टियाँ: इस रजिस्टर में शामिल सामग्रियों में पाण्डुलिपियाँ, मौखिक परंपराएँ, ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग, पुस्तकालयों व अभिलेखागार की महत्वपूर्ण वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं, जो "वैश्विक महत्त्व और सार्वभौमिक मूल्य" रखती हैं।
    • अब तक शामिल कुल प्रविष्टियाँ :  वर्ष 2025 में हुई नवीनतम घोषणाओं के बाद, इस रजिस्टर में अब कुल 570 प्रविष्टियाँ शामिल की गई हैं। 

भारत की कुल प्रविष्टियाँ

भारत की ओर से अब तक 13 प्रविष्टियाँ इस रजिस्टर में दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें से दो संयुक्त प्रविष्टियाँहैं। प्रमुख प्रविष्टियाँ निम्नलिखित हैं:

  • ऋग्वेद (2005)
  • अभिनवगुप्त की कृतियाँ (2023)
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की बैठक के अभिलेख (2023)
  • डच ईस्ट इंडिया कंपनी के अभिलेख (2003)
  • नवीनतम – श्रीमद्भगवद्गीता व नाट्यशास्त्र (2025)

नाट्यशास्त्र के बारे में 

  • परिचय: नाट्यशास्त्र प्रदर्शन कलाओं पर एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जिसे परंपरागत रूप से महर्षि भरतमुनि द्वारा रचित माना जाता है। 
  • रचनाकाल: इसका रचना काल अनुमानतः 500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी के बीच है, जबकि यूनेस्को के अनुसार यह द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में संहिताबद्ध हुआ।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • इसमें 36,000 श्लोक हैं जिसमें नाट्य (नाटक), अभिनय (प्रदर्शन), रस (सौंदर्यपूर्ण अनुभव), भाव (भावना), संगीत (संगीत) को परिभाषित करने वाले नियमों का एक व्यापक समूह शामिल है। 
  • इसमें प्रमुख रूप सेरस (aesthetic experience) की अवधारणा दी गई है।
  • यह ग्रंथ न केवल रंगमंच और प्रदर्शन कला का शास्त्र है, बल्कि एक दार्शनिक ग्रंथ भी है, जो दर्शक को एक सांस्कृतिक चेतना की समानांतर वास्तविकतामें ले जाता है।
  • नाट्यशास्त्र भारतीय ही नहीं बल्कि वैश्विक रंगमंच परंपराओं के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ बन चुका है।

श्रीमद्भगवद्गीता के बारे 

  • परिचय: श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक संस्कृत ग्रंथ है। जो महाभारत महाकाव्य के छठे अंक ( भीष्म पर्व ) में संकलित है ।
  • रचना: इसे महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित माना जाता है। 
  • रचना काल: प्रथम या द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व
  • संरचना:18 अध्यायों में 700 श्लोक

विषयवस्तु :

  • गीता मूलतः अर्जुन और कृष्ण के बीच संवाद है, जो महाभारत के महान युद्ध की शुरुआत से ठीक पहले घटित होता है। जिसमें अर्जुन-कृष्ण के समक्ष अपने ही परिवार के सदस्यों के खिलाफ युद्ध करने में अपनी शंकाएं व्यक्त करते हैं।
  • अर्जुन की दुविधा और कृष्ण के उत्तर जीवन, कर्तव्य, धर्म, आत्मा, मोक्ष आदि पर आधारित गूढ़ दार्शनिक संवाद बन जाता है।
  • कृष्ण के उत्तर गीता का केन्द्रीय विषय हैं तथा जीवन जीने के लिए आध्यात्मिक और नैतिक आधार प्रदान करते हैं।
  • भगवद्गीता सतत, संचयी प्राचीन बौद्धिक भारतीय परंपरा में एक केंद्रीय ग्रंथ है, जो वैदिक, बौद्ध, जैन और चार्वाक जैसे विभिन्न वैचारिक आंदोलनों को संश्लेषित करता है।
  • अपनी दार्शनिक व्यापकता और गहराई के कारण आज भी यह विश्वभर में अध्ययन व चिंतन का विषय बना हुआ है और अनेकों भाषाओं में अनुवादित है।

निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र की यूनेस्को मैमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में प्रविष्टि भारत कीज्ञान परंपरा, सांस्कृतिक विविधता और बौद्धिक विरासत की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता का प्रमाण है। यह न केवल गौरवपूर्ण है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जुड़ने और इन्हें विश्व मंच पर साझा करने की प्रेरणा भी देता है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR