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कीटों की दुनिया : पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्व 

(प्रारंभिक परीक्षा-पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3:संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

कीट सभी स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिये जैविक नींव के रूप में कार्य करते हैं। इन्हें सिर्फ हानिकारक समझना पारिस्थितिकी के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिये भी लाभदायक नहीं है। अधिकांश कीट मनुष्यों के लिये हानिकारक नहीं बल्कि लाभदायक हैं। इनके बिना प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा।

कीट (Insect)

  • छह संयुक्त पैरों वाला कोई भी छोटा जीव, जिसका शरीर तीन भागों (सिर, वक्ष और उदर)में विभाजित हो, कीट (Insect) कहलाता है। इनमें पंख, दो स्पर्श-सूत्र (Antennae) और एक बाह्य कंकाल होता है।
  • कीटों के वैज्ञानिक अध्ययन को ‘कीटविज्ञान' (Entomology) कहते हैं, जो प्राणी विज्ञान (Zoology) की एक शाखा है।
  • कीटों की लगभग करोड़ प्रजातियाँ मौजूद हैं। इनमें झींगुर (Beetle), तितली एवं शलभ (Moth), मधुमक्खी, ततैया,चीटियों, टिड्डे, ड्रैगनफ्लाई और मक्खियों की प्रजातियाँ शामिल हैं।

विशेषताएँ

  • अधिकांश कीटों में एक सुरक्षात्मक खोल होता है और वे उड़ सकते हैं। साथ ही, उन्हें अल्प भोजन एवं रहने के लिये कम स्थान की आवश्यकता होती है। ये बड़ी संख्या में संतानोत्पत्ति में सक्षम होते हैं।
  • उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों तथा समुद्र को छोड़कर विश्व के प्रत्येक हिस्से में कीट पाए जाते हैं। ये अधिकांशतः पेड़, पौधों, फलों और मशरूम का भक्षण करते हैं। साथ ही, कुछ बड़े आकार के कीट छोटे पक्षियों व छोटे जन्तुओं को भी खाते हैं।
  • लेडीबर्ड (Ladybird) पौधों और सब्जियों को खाने वाले कीटोंका भक्षण करतीहै। कीटों को पृथ्वी का सबसे मज़बूत प्राणी माना जाता है क्योंकि वे अपने भार के 850 गुना तक वज़न ले जाने में सक्षम होते हैं।

पारिस्थितिकी के लिये महत्त्व

  • पर्यावरण संतुलन में कीट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये ये अत्यंत आवश्यक हैं।
  • कीट पोषक तत्त्वों के चक्रण, पौधों के परागण और बीजों के प्रसार या स्थानांतरण में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त, ये मृदा संरचना को बनाए रखने, उर्वरता में सुधार करने तथा अन्य जीवों की जनसंख्या को नियंत्रित करने के साथ-साथ खाद्य शृंखला में एक प्रमुख खाद्य स्रोत के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • पृथ्वी पर लगभग 80% पुष्प पादपों का परागण कीटों द्वारा किया जाता है। भौंरे, मधुमक्खियाँ, भृंग, तितलियाँ और मक्खियाँ परागण में सहायक (Pollinators) होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, लेडीबर्ड बीटल्स, लेसविंग, परजीवी ततैया जैसे कीट अन्य हानिकारक कीटों, आर्थ्रोपोड्स और कशेरुकियों को नियंत्रित करते हैं।
  • साथ ही, कीट मृदा उर्वरता में भी सुधार करते हैं। गुबरैला एक रात में अपने वज़न के लगभग 250 गुने गोबर को निस्तारित कर सकता है। ये गोबर को खोदकर और उपभोग करके मृदा पोषक-चक्र व उसकी संरचना में सुधार करते हैं।
  • गुबरैले की अनुपस्थिति गोबर पर मक्खियों को एक प्रकार से निवास प्रदान कर सकती है।अत: कई देशों ने पशुपालन के लाभ और बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिये यह प्रस्तावित किया है।
  • पर्यावरण की सफाई में भी इनकी महती भूमिका है। ये मृत और जैविक अपशिष्टों के विघटन में सहायक होते हैं। विघटन की प्रक्रिया के बिना बिमारियों का प्रसार तेज़ी से होने के साथ-साथ कई जैविक-चक्र भी प्रभावित होंगे।
  • कीट पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। साथ ही, प्रमुख वैज्ञानिक सिद्धांतों में अनुसंधान मॉडल के रूप में इन कीटों का उपयोग किया गया है।

खाद्य के रूप में 

  • कीट खाद्य-शृंखला का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। विभिन्न प्रकार के कवक कई प्रकार के कीटों की श्वासनली में प्रवेशकर उन्हें भीतर से मार देते हैं।
  • लगभग 113 देशों में 3,000 जातीय समूहों द्वारा अनुमानत: 1,500 कीट प्रजातियों का खाद्य के रूप में उपभोग किया जाता है।
  • पूर्वी अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानीय समुदायों द्वारा 51 कीट प्रजातियों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

आर्थिक महत्त्व

  • कीटों का आर्थिक महत्व भी है। इनसे शहद, रेशम, मोम और अन्य उत्पाद प्राप्त होते हैं।
  • स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्त्वों के चक्रण का मूल्य अनुमानतः 3 ट्रिलियन डॉलर है। गुबरैले, झींगुर, मक्खियाँ, तिलचट्टे इत्यादि पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण में सहायक होते हैं।
  • कुछ कीट और उनके लार्वा प्राकृतिक रूप से जैविक नियंत्रण का कार्य करते हैं। कीटों द्वारा किये गए प्राकृतिक जैविक नियंत्रण का मूल्य लगभग 400 बिलियन डॉलर आंका गया है।

हानिकारक कीट

  • कुछ ऐसे भी कीट हैं जो फसलों को नष्ट करते हैं और बीमारियों का प्रसार करते हैं। हालाँकि, इनकी संख्या 1% से भी कम है। मच्छर, पिस्सू, जूँ और कुछ मक्खियाँ बीमारियों का प्रसार करती हैं।
  • कोलोराडो बीटल आलू की फसलों को नष्ट करने के लिये उत्तरदायी हैं। टिड्डे कृषि फसलों को नष्ट कर देते हैं। दीमक जैसे कीट घरों और लकड़ियों को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं।

कीटों के नष्ट होने का कारण

  • भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर कई कीट प्रजातियों की संख्या धीरे-धीरे घट रही है। प्राकृतिक आवास में कमी इसका प्रमुख कारण है। साथ ही, कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग इसका अन्य कारण है।
  • लगभग 98% कीट पारिस्थितिकी तंत्र के लिये सहायक और उपयोगी हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में प्रकाशित ‘ब्रिटिश भारत के जीव-जंतु’ अभी तक भारतीय कीटों पर एकमात्र दस्तावेज़ है।
  • वर्तमान में कीटों के संरक्षण के लिये कोई योजना नहीं है। साथ ही, इस विषय पर कोई अद्यतन अध्ययन, साहित्यएवं संग्रह भी मौजूद नहीं है।अत: यह समय की माँग है कि भारत सरकार लाभकारी कीटों के संरक्षण के अतिरिक्त ‘नामित व ज्ञात कीटों’ के साथ ‘गैर-नामित व अज्ञात कीटों’ के दस्तावेज़ीकरण की पहल करे।
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