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बैड बैंक: अवधारणा एवं स्थापना का प्रस्ताव

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था, संसाधनों को जुटाने तथा विकास से सम्बंधित विषय, धन-शोधन और इसे रोकना)

पृष्ठभूमि

हाल ही में, ‘भारतीय बैंक संघ’ (Indian Banks Association- IBA) की अगुवाई में बैंकिंग क्षेत्र ने वित्त मंत्रालय और आर.बी.आई. के समक्ष बैड बैंक की स्थापना हेतु एक प्रस्ताव पेश किया। बैड बैंक की स्थापना का विचार विशेषकर बहस के लिये तब आता है, जब निकट भविष्य में बैंकिंग क्षेत्र में तनाव बढ़ने का अनुमान हो। कोविड-19 बैंकिंग व वित्तीय क्षेत्र को विशेष रूप से प्रभावित कर रहा है। साथ ही, कम्पनियों और व्यक्तिगत कमाई में गिरावट के कारण गैर-निष्पादनकारी परिसम्पत्तियों (NPA) में वृद्धि हो सकती है। एन.पी.ए. में वृद्धि का कारण बैड लोन तथा बैड एसेट में वृद्धि है।

उल्लेखनीय है कि ‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड’ (IBC) तथा बैंकों द्वारा बैड लोन को राईट-ऑफ़ करने के बाद एन.पी.ए. में गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही थी, परंतु विभिन्न विश्लेषकों का सुझाव है कि आगामी कुछ वर्षों में, बैंकिंग प्रणाली में संकटग्रस्त परिसम्पत्तियों (Stressed Assets) का अनुपात वर्तमान के लगभग 11 % से बढ़कर 18 % तक हो सकता है। इस प्रकार की चुनौती से निपटने के लिये बैंकिंग उद्योग ने सरकार की हिस्सेदारी वाले बैड बैंक की स्थापना का प्रस्ताव किया है।

बैड बैंक: अवधारणा

  • बैड बैंक एक ऐसी आर्थिक अवधारणा है जिसके तहत बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक (बैड बैंक) में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जो कर्ज़ में फँसी राशि और परिसम्पतियों को खरीदने के साथ-साथ उससे निपटने का भी कार्य करते हैं।
  • बैड बैंक की स्थापना से अन्य बैंकों पर संकटग्रस्त कर्ज़ की वसूली और रिकवरी का दबाव कम हो जाएगा परिणामस्वरुप बैंक नए ऋण के वितरण पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।
  • उल्लेखनीय है कि बैड बैंक की अवधारणा को सर्वप्रथम वर्ष 1988 में वाणिज्यिक अचल सम्पत्ति पोर्टफोलियो सम्बंधी समस्या का समाधान करने के उद्देश्य से पिट्सबर्ग में प्रस्तुत किया गया था।

बैड बैंक का हालिया प्रस्ताव

  • बैड बैंक उन बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के बैड लोन तथा अन्य गैर-नकदी स्वामित्त्व (ILLIQUID HOLDINGS) को खरीदता है, जो उनकी बैलेंस शीट को क्लियर करता है।
  • आई.बी.ए. द्वारा प्रस्तावित बैड बैंक की स्थापना में सरकार और बैंकों की इक्विटी (शेयर पूँजी) अंशदान का भी विचार दिया गया है।
  • बैड बैंक का विचार पी.एन.बी. के पूर्व अध्यक्ष सुनील मेहता की अध्यक्षता वाले एक पैनल पर आधारित है, जिसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में संकटग्रस्त परिसम्पत्तियों के तेज़ी से समाधान व प्रबंधन के लिये गठित किया गया था।
  • इस पैनल ने दो वर्ष पूर्व ही बड़े स्तर के बैड लोन के शोधन व समाधान हेतु एक परिसम्पत्ति प्रबंधन कम्पनी (ए.एम.सी.)- 'सशक्त इंडिया एसेट मैनेजमेंट' का प्रस्ताव दिया था। विदित है कि सर्वप्रथम बैड बैंक की चर्चा वर्ष 2017 में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में की गई थी।

एन.पी.ए. में वृद्धि का अनुमान

  • इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (Ind-Ra) की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के प्रभाव और सम्बंधित नीतियों के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 21 और वित्त वर्ष 22 (FY21 and FY22) के मध्य शीर्ष 500 निजी उधारकर्ताओं से 1,67,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त कर्ज के संकटग्रस्त होने या फँसने की सम्भावना है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अनुमान महामारी की शुरुआत से पहले अनुमानित 2,54,000 करोड़ रुपये के बैड लोन के अतिरिक्त है। इस प्रकार, कुल संकटग्रस्त हो सकने वाले कर्ज़ की धनराशि 421,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है।
  • बकाया ऋण का 11.57 % पहले से ही संकट में है। इस बकाया ऋण के अनुपात में 18.21 % तक वृद्धि होने की सम्भावना है।

बैड बैंक पर सरकार का दृष्टिकोण

  • वित्त मंत्रालय ने औपचारिक रूप से बैड बैंक के प्रस्ताव पर कोई विचार व्यक्त नहीं किया है, परंतु संकेत दिया है कि सरकार शेयर पूँजी को बैड बैंक में लगाने (Infuse) के लिये उत्सुक नहीं है।
  • सरकार का विचार है कि बैड लोन का समाधान बाजार-आधारित तरीके से होना चाहिये क्योंकि निजी क्षेत्र में पहले से ही कई परिसम्पत्ति पुनर्निर्माण कम्पनियाँ संचालित हो रही हैं।
  • हालिया वर्षों में, सरकार ने सरकारी स्वामित्त्व वाले बैंकों में काफी हद तक पूँजी डालने (Capitalized) के साथ-साथ सरकारी बैंकों का विलय भी किया है।
  • पिछले तीन वित्तीय वर्ष में, सरकारी स्वामित्त्व वाले बैंकों में 2.65 लाख करोड़ रुपये की इक्विटी सरकार द्वारा डाली गई है।
  • सरकार की तरफ़ से, इस प्रकार के कदमों के साथ आई.बी.सी. के तहत दिवाला शोधन को बैड लोन की चुनौती से निपटने के लिये पर्याप्त माना जा रहा है।
  • साथ ही, ऋण लेने के बाद कानूनी कार्रवाई से बचने हेतु देश छोड़ने वाले आर्थिक अपराधियों के लिये ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018’ के तहत भी कार्यवाही की जाती है।
  • मई के अंत में भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC) की बैठक में बैड बैंक के प्रस्ताव पर चर्चा की गई थी, परंतु इसे कोई समर्थन नहीं मिला।

बैड बैंक पर आर.बी.आई. का दृष्टिकोण

  • केंद्रीय बैंक ने कभी भी प्रमुख प्रमोटर के रूप में वाणिज्यिक बैंकों के समर्थन से बैड बैंक की स्थापना का पक्ष नहीं लिया। आर.बी.आई. के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने वाणिज्यिक बैंकों के अधिक शेयर के साथ बैड बैंक स्थापित करने के विचार का विरोध किया था।
  • सरकार द्वारा वित्त पोषित बैड बैंक, ऋण को सिर्फ एक जगह से (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक) दूसरी जगह (बैड बैंक) स्थानांतरित ही करेगा और न कि यह देखेगा कि इन मामलों में कैसे सुधार होगा।
  • यह भी सुझाव है कि बैड बैंक को दी जाने वाली पूँजी को सीधे सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक को दे दी जानी चाहिये।

बैड बैंक का विकल्प

  • आर्थिक नीति-निर्माण में शामिल कई उद्योग विशेषज्ञों व सरकारी अधिकारियों का तर्क है कि आई.बी.सी. को अधिनियमित करने से बैड बैंक की आवश्यकता कम हो गई है क्योंकि सभी उधारदाताओं के लिये दिवाला शोधन व समाधान के लिये एक पारदर्शी और खुली प्रक्रिया उपलब्ध है।
  • रिकवरी के लिये दावा की गई राशि की वसूली के सम्बंध में आर.बी.आई. के नवीनतम आँकड़े उपलब्ध है। इन आँकड़ों के अनुसार, बैंकों द्वारा 2018-19 में आई.बी.सी. (IBC) के माध्यम से रिकवरी हेतु दावा की गई राशि में से औसतन 42.5% वसूली की गई, जबकि सरफेसी अधिनियम (SARFAESI) के माध्यम से 14.5% तथा लोक अदालतों के माध्यम से 5.3% के साथ-साथ ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के माध्यम से 3.5% की वसूली की गई।
  • इस तरह से इस विचार को बल मिला है कि आई.बी.सी. अधिनियम के माध्यम से होने वाला ऋण शोधन समाधान अथवा ए.आर.सी. (ARC) को बैड लोन की बिक्री जैसी प्रक्रिया पहले से ही मौजूद है जो सरकार द्वारा वित्त पोषित बैड बैंक के बजाय एन.पी.ए. समस्या से निपटने के लिये एक बेहतर तरीका है।
  • विरल आचार्य ने बैंकों की संकटग्रस्त सम्पत्तियों की समस्या को हल करने के लिये दो मॉडल प्रस्तावित किये।
  • पहले मॉडल के अनुसार, एक ‘निजी एसेट मैनेजमेंट कम्पनी’ (PAMC) का गठन किया जा सकता है।
  • दूसरा मॉडल एक ‘नेशनल एसेट मैनेजमेंट कम्पनी’ (NAMC) के गठन के रूप में प्रस्तावित है।
  • नेशनल एसेट मैनेजमेंट कम्पनी अपनी वित्तीय ज़रूरतों के लिये ऋण जुटाएगा तथा इसमें सरकार की इक्विटी हिस्सेदारी कम होगी। साथ ही, ए.आर.सी. व निजी इक्विटी की भाँति परिसम्पत्तियों को प्रबंधित करने के लिये परिसम्पत्ति प्रबंधक भी होंगें।

आगे की राह

बैंकिंग क्षेत्र में एन.पी.ए. की समस्या दिनोंदिन जटिल होती जा रही है। ऐसी समस्या से निजात पाने के लिये पहले से उपस्थित नियमों, कानूनों, संस्थाओं और नियामकों को और मज़बूत किया जाना चाहिये। ऋण के वितरण के समय ही रिस्क फैक्टर को ध्यान में रखा जाना चाहिये। साथ ही, ऋण वितरण में प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिये।

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