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कोविड-19 :  आर.बी.आई.  के  लिये  चुनौतियाँ एवं सुझाव

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3: भारतीय अर्थव्यवस्था)

चर्चा  में  क्यों?

  • हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास द्वारा बैंकों (सरकारी और निजी बैंक) के मुख्य अधिकारियों के साथ लॉकडाउन के उपरांत अर्थव्यवस्था में तरलता की स्थिति को लेकर चर्चा हुई।
  • इस चर्चा में, देश की आर्थिक स्थिति के बारे में तथा अर्थव्यवस्था में कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों को कम करने हेतु रिज़र्व बैंक द्वारा लिये गए निर्णयों के बारे में समीक्षा की गई। साथ ही, देश में वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता का भी मूल्यांकन किया गया और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (Micro, Small and Medium Enterprises-MSMEs) पर विशेष ध्यान देने पर जोर दिया गया।

प्रष्ठभूमि

  • कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक समस्याओं ने केंद्रीय बैंकों की भूमिका को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया है। वर्तमान में केंद्रीय बैंकों के सामने इतिहास के दोहराव से बचने के लिये विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ हैं।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1929-30 की आर्थिक महामंदी के समय विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक मंदी की स्थिति से निपटने में विफल रहे थे।
  • वर्तमान में, भारतीय रिज़र्व बैंक को निम्नलिखित चुनौतियों  से एक-साथ  निपटने की आवश्यकता है-

i. लघु एवं दीर्घकालिक अवधि के लिये योजना बनाना।
ii. आर्थिक संवृद्धि एवं स्थायित्व के मध्य संतुलन स्थापित करना।
iii. उत्तरदायित्व एवं स्वायत्तता के बीच समायोजन स्थापित करना।

कोविड-19 से निपटने के लिये आर.बी.आई. द्वारा उठाए गए कदम

  • अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने के लिये जनता से बॉन्ड की खरीद। इसके अंतर्गत, केंद्रीय बैंक द्वारा बॉन्डधारक से बॉन्ड को खरीदकर उसके बदले में उन्हें निश्चित धनराशि प्रदान (मूलधन व ब्याज) की जाती है, जिससे उनकी क्रय-शक्ति में वृद्धि होती है तथा अर्थव्यवस्था की समग्र मांग बढ़ती है।
  • आर्थिक चक्र को मज़बूत करने के उद्देश्य से उद्योगों को ऋण देना, ताकि उत्पादन एवं आपूर्ति श्रृंखला के साथ-साथ लोगों के रोज़गार को भी बचाया जा सके।
  • वाणिज्यिक बैंकों की साख क्षमता में वृद्धि करने के लिये आरक्षित अनुपातों (CRR, SLR) में कमी करना।
  • कुछ संकटग्रस्त उद्योगों को संकट से उबारने के लिये विशेष रूप से आर्थिक सहायता देना जैसे, हाल ही में म्यूचुअल फण्ड उद्योग को संकट से बचाने के लिये रिज़र्व बैंक ने 50,000 करोड़ का विशेष आर्थिक तरलता पैकेज दिया था।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली की परम्परागत चुनौतियाँ, जिन्होंने कोविड-19 के समय  बैंकिंग प्रणाली के दबाव में वृद्धि  की:

  • वर्तमान में, भारतीय बैंकों की गैर-निष्पादनकारी परिसम्पत्तियाँ (Non-Performing Assets-NPAs) लगभग 14 लाख करोड़ रुपए की हैं।
  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों का कमज़ोर एवं भ्रष्ट प्रबंधन। इन बैंकों की एन.पी.ए. का मुख्य कारण, अयोग्य ग्राहकों को दिये गए ऋण हैं।
  • निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रबंधन अधिक शक्तिशाली होता है जिससे कभी-कभी अंशधारकों के हितों की अनदेखी हो जाती है।
  • सरकारी बैंकों की कार्यप्रणाली का सुस्त होना तथा उनमें कार्य-संस्कृति कुशलता एवं दक्षता का अभाव।

आर्थिक चुनौतियों से निपटने हेतु आर.बी.आई. के लिये सुझाव:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक को लघु और दीर्घकालिक योजनाएँ बनानी होंगी, क्योंकि ऋणों के स्तर को नियंत्रित करना आवश्यक है, ताकि भावी पीढ़ियों पर इसका दबाव ना पड़े।
  • भारत किसी दूसरे विकसित देश के आर्थिक मॉडल को भी नहीं अपना सकता; जैसे, अमेरिका का राजकोषीय घाटा उसकी जी.डी.पी. का लगभग 15 प्रतिशत है, इसी प्रकार जापान का  सार्वजानिक ऋण स्तर उसकी जी.डी.पी. का 240 प्रतिशत है। भारत की स्थिति इन दोनों ही पहलुओं पर संतोषजनक है. इसलिये हमें अपनी घरेलू आवश्यकताओं के अनुरूप ही आर्थिक मॉडल का अनुसरण करना चाहिये।
  • तरलता बढ़ाने और मांग सृजित करने के साथ-साथ आर.बी.आई. द्वारा महँगाई को भी नियंत्रित करना होगा।
  • आर.बी.आई. को क्षेत्र विशेष के मुताबिक अपनी नीतियों में लचीलापन लाने की आवश्यकता है।
  • पिछले कुछ समय में भारत की कई बड़ी कम्पनियाँ दिवालिया घोषित हो चुकी हैं जैसे, एन.बी.एफ.सी. और किंगफिशर एयरलाइन्स। इसलिये, रिज़र्व बैंक को वर्तमान में कम्पनियों को दिवालियापन से बचाने के लिये उचित उपाय करने की आवश्यकता है।
  • लॉकडाउन से बाद की चुनौतियों से निपटने हेतु अभी नीति-निर्माण करने की आवश्यकता है, ताकि उन नीतियों को लॉकडाउन के तुरंत बाद लागू किया जा सके और अर्थव्यवस्था को शीघ्रता से पटरी पर लाया जा सके।
  • नीतियों का निर्माण इस प्रकार किया जाए कि राजकोषीय और मौद्रिक नीति के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके और साथ ही नियोक्ताओं, कर्मचारियों, बैंकों और विदेशी निवेशकों को भी प्रोत्साहन एवं लाभ प्राप्त हो सके।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSMEs) को विशेष रूप से प्रोत्साहन की आवश्यकता है क्योंकि ये बड़े स्तर पर रोज़गार उपलब्ध कराते हैं।

निष्कर्ष

वर्तमान में, हमें यह अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि हम सभी एक ही तूफान का सामना कर रहे हैं, लेकिन अलग-अलग नौकाओं में सवार हैं। भारत को अपनी ज़रूरतों के अनुसार ही आर्थिक उपाय करने चाहियें। भारत की आर्थिक प्रगति के लिये पारदर्शी, स्वतंत्र और जवाबदेह केंद्रीय बैंक की आवश्यकता है।

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