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जी.एस.टी. के तीन वर्ष: स्लैब, भुगतान, विवाद और विकल्प

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय)

पृष्ठभूमि

भारत में वस्तु और सेवा कर (जी.एस.टी.) जुलाई 2017 से प्रभावी है। हाल ही में, इसको लागू हुए तीन वर्ष पूरे हो गए है। जी.एस.टी. को परम्परागत ‘उत्पादन-आधारित कर प्रणाली’ से ‘उपभोग-आधारित कर प्रणाली’ की ओर एक बड़े परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। इस नई व्यवस्था में राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले कर, जैसे- वैट, बिक्री कर, चुंगी कर (Octroi) या प्रवेश कर के साथ-साथ केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले कर, जैसे- केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर को भी समाहित किया गया है। जी.एस.टी. व्यवस्था के कारण राज्यों को सम्भावित राजस्व नुकसान की भरपाई हेतु इसके लागू होने से अगले पाँच वर्षों तक केंद्र द्वारा क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया गया है। वर्तमान में, राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति के हिस्से को जारी करने और ‘क्षतिपूर्ति उपकर शीर्ष’ के तहत भुगतान को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच खींचतान चल रही है।

जी.एस.टी. में क्या शामिल है?

  • जी.एस.टी. में, केंद्र द्वारा राज्यों के भीतर (Intra-state- अंत:राज्यीय) वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाने वाला कर शामिल है, जिसको केंद्रीय जी.एस.टी. (CGST) कहते है। साथ ही, सम्बंधित राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा इन वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला कर भी शामिल है, जिसे राज्य जी.एस.टी. (SGST/UTGST) कहते हैं।
  • कर से छूट प्राप्त (0% दर) वस्तुओं को छोड़कर, वस्तुओं और सेवाओं की प्रत्येक खरीद पर CGST व SGST एक साथ लगाए जाते हैं। उपभोक्ता प्रमुख टैक्स स्लैबों- 5%, 12%, 18% और 28% में से किसी के तहत एक समग्र दर का भुगतान करता है। इसमें से आधा हिस्सा केंद्र को तथा आधा सम्बंधित राज्य को प्राप्त होता है, जिस राज्य में वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त, एकीकृत जी.एस.टी. (IGST) अंतर-राज्यीय (Inter-state) लेनदेन तथा वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात व आयात पर लगाया जाता है। IGST, SGST और CGST का एक संयोजन है, जिसको केंद्र द्वारा लगाया व प्रशासित किया जाता है और बाद में उपभोग करने वाले राज्य और केंद्र के बीच वितरित कर दिया जाता है।
  • इसके अलावा, जी.एस.टी. परिषद् द्वारा अधिसूचित वस्तुओं पर 1% से लेकर 200% की दर के बीच ‘क्षतिपूर्ति उपकर’ लगाया जाता है। हालाँकि, इन अधिसूचित वस्तुओं में 28% के उच्चतम स्लैब की कुछ हानिकारक और विलासिता वाली वस्तुओं, जैसे- सिगरेट, पान मसाला और ऑटोमोबाइल की कुछ श्रेणियाँ शामिल है।

जी.एस.टी. परिषद् (GST Council)

I. जी.एस.टी. परिषद्, केंद्र और राज्य सरकारों को जी.एस.टी. से जुड़े मुद्दों पर सिफारिश करने के लिये एक संवैधानिक निकाय है।
II. जी.एस.टी. परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करते हैं। अन्य सदस्यों के रूप में केंद्रीय वित्त या राजस्व राज्य मंत्री तथा सभी राज्यों के वित्त अथवा कराधान के प्रभारी मंत्री शामिल होते हैं।
III. 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के द्वारा अनुच्छेद 279A (1) को जोड़ा गया। अनुच्छेद 279A लागू होने के 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति द्वारा GST परिषद का गठन किये जाने का प्रावधान किया गया था।

जी.एस.टी. की कार्य प्रणाली

  • जी.एस.टी. की कार्य प्रणाली को समझने के लिये ‘चम्मच और कांटे’ का एक उदहारण लेते है, जिस पर जी.एस.टी. की दर 12% है। एक उपभोक्ता चम्मच और कांटे की कीमत पर 12% जी.एस.टी. का भुगतान करेगी, यदि वह इन वस्तुओं की खरीदारी इसका उत्पादन करने वाले राज्य (राज्य के भीतर लेनदेन का मामला) में करती है। फिर, इसमें 6% की हिस्सेदारी CGST के रूप में केंद्र की और 6% की हिस्सेदारी SGST के रूप में राज्य की होगी।
  • थोक (बी2बी: B2B) लेनदेन के लिये, जी.एस.टी. व्यवस्था पहले से भुगतान किये गए कर के विरुद्ध विक्रेता को ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (आई.टी.सी.) का दावा करने की अनुमति देता है।
  • हालाँकि, अगर चम्मच और कांटे किसी एक राज्य (मध्य प्रदेश) में निर्मित होते हैं और किसी अन्य राज्य (गुजरात) में बेचे जाते हैं, तो अंतर-राज्यीय लेनदेन पर 12% IGST (6% CGST, 6% SGST) लगता है। IGST केंद्र द्वारा आरोपित और एकत्रित किया जाता है, और बाद में वस्तुओं का उपभोग करने वाले राज्य के साथ विभाजित कर दिया जाता है।
  • अब, यदि कोई उपभोक्ता गुजरात में किसी दुकान से इसकी खरीदारी करता है, तो वह 12% GST (6% CGST, 6% गुजरात SGST) का भुगतान करता है। दुकान-मालिक पहले ही इनपुट पर IGST का भुगतान कर चुके हैं। चूँकि जी.एस.टी. एक गंतव्य-आधारित कर है, इसलिये लेनदेन से IGST में राज्य की हिस्सेदारी उपभोग करने वाले राज्य, गुजरात को प्राप्त होनी चाहिये, न कि निर्यात करने वाले राज्य मध्य प्रदेश को। इसलिये, दुकान-मालिक IGST का उपयोग CGST और गुजरात SGST का भुगतान करने के लिये क्रेडिट के रूप में कर सकते हैं।
  • इस प्रकार, निर्यात करने वाले राज्य में पहले किये गए IGST भुगतान से क्रेडिट के निर्धारण के बाद IGST का अंतिम मूल्यांकन/विभाजन (Apportionment) उपभोग करने वाले राज्य (गुजरात) और केंद्र के बीच होता है।

क्षतिपूर्ति उपकर की पृष्ठभूमि

  • चूँकि जी.एस.टी. में राज्यों के लिये संरक्षित कर, जैसे- बिक्री कर आदि को समाहित कर लिया गया है, इसलिये भारत के संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता हुई। इस संशोधन के कारण सातवीं अनुसूची भी प्रभावित हुई है अतः इसके लिये आधे राज्यों के विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता थी।
  • जी.एस.टी. एक ‘गंतव्य-आधारित कर’ है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने वाले राज्यों को नुकसान होगा जबकि उसका उपभोग करने वाले राज्यों को इसका लाभ प्राप्त होगा। अतः निर्माता या उत्पादक राज्यों को जी.एस.टी. व्यवस्था से सहमत करने हेतु एक ‘क्षतिपूर्ति फार्मूला’ बनाया गया था।
  • राज्यसभा की एक प्रवर समिति ने सिफारिश की कि क्षतिपूर्ति की गारंटी पाँच वर्ष की अवधि के लिये होनी चाहिये। इस प्रकार, विनिर्माण करने वाले राज्यों की कर प्राप्तियों को एक गारंटी द्वारा संरक्षित किया गया।

क्षतिपूर्ति उपकर निधि

  • ‘क्षतिपूर्ति उपकर’ के तौर-तरीके जी.एस.टी. (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 द्वारा निर्दिष्ट किये गए थे।
  • इस अधिनियम में माना गया कि प्रत्येक राज्य का जी.एस.टी. राजस्व आधार वर्ष 2015-16 में एकत्र की गई राशि की तुलना में प्रत्येक वर्ष 14% की दर से बढ़ेगा। जो राज्य किसी वर्ष इस राशि से कम कर एकत्रित करेगा, उस कमी की भरपाई के लिये क्षतिपूर्ति की जाएगी।
  • इस राशि का भुगतान प्रत्येक दो महीने में अनंतिम लेखा-जोखा के आधार पर किया जाएगा और प्रत्येक वर्ष राज्य के खातों को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा लेखा परीक्षण किये जाने के बाद समायोजित किया जाएगा।
  • इसके लिये एक ‘क्षतिपूर्ति उपकर निधि’ बनाई गई, जिसमें से राज्यों को उनके कर संग्रह में कमी की स्थिति में भुगतान किया जाएगा। कुछ वस्तुओं पर अतिरिक्त उपकर लगाया जाएगा और इस उपकर का उपयोग क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिये किया जाएगा। ये उत्पाद पान मसाला, सिगरेट और तम्बाकू उत्पाद, वातित जल (सोडा वाटर), कैफीनयुक्त पेय पदार्थ, कोयला और कुछ यात्री मोटर वाहन हैं।
  • इस योजना के अंतर्गत शुरू के दो वर्षों में, एकत्र किये गए उपकर राज्यों के कर अनुमान से अधिक था। तीसरे वर्ष 2019-20 में इसमें गिरावट आई और निधि आवश्यकता से काफी कम हो गई।
  • कर संग्रह में यह गिरावट अर्थव्यवस्था में मंदी के साथ-साथ उपकर निधि में योगदान देने वाले मोटर वाहन जैसे क्षेत्रों में नकारात्मक वृद्धि के कारण हुई।

राज्यों को क्षतिपूर्ति

  • जी.एस.टी. (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 के अनुसार, राज्यों को पाँच वर्ष (2017 से 2022) की संक्रमण अवधि के लिये जी.एस.टी. के कार्यान्वयन के कारण राजस्व नुकसान हेतु क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है।
  • क्षतिपूर्ति की गणना राज्यों के वर्तमान जी.एस.टी. राजस्व और 2015-16 आधार वर्ष से 14% की वार्षिक राजस्व वृद्धि दर का अनुमान लगाने के बाद संरक्षित राजस्व के बीच अंतर के आधार पर की जाती है।
  • ऐसा लगता है की 14% की उच्च वृद्धि दर का निर्धारण आर्थिक वास्तविकताओं को ध्यान में रख कर नहीं बल्कि ‘मध्यम मार्ग की भावना’ के रूप में स्वीकार किया गया था क्योंकि रिकॉर्ड बताते हैं कि जी.एस.टी. परिषद की शुरूआती कुछ बैठकों में 10.6% की राजस्व वृद्धि दर का प्रस्ताव किया गया था, जो वर्ष 2015-16 से पूर्व के तीन वर्षों की औसत अखिल भारतीय विकास दर के बराबर थी।

क्षतिपूर्ति और विवाद

  • राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति के भुगतान में देरी पिछले वर्ष अक्टूबर माह से जी.एस.टी. के राजस्व में गिरावट आने के बाद शुरू हुई। अप्रैल-जून तिमाही में जी.एस.टी. राजस्व में 41% की गिरावट देखी गई है।
  • आधार वर्ष 2015-16 से कर राजस्व में वृद्धि की गणना 14% की चक्रवृद्धि दर से किया गया है परंतु पिछले दो वर्षों से GST संग्रह समान स्तर पर बना हुआ है। परिणामस्वरूप, राज्यों का मासिक संरक्षित राजस्व, जो 2019-20 के लिये 55,882 करोड़ रुपये था, 2020-21 में बढ़कर 63,706 करोड़ रुपये हो गया है।
  • चालू वित्त वर्ष में, IGST के निपटारे को ध्यान में रखते हुए, जुलाई माह में SGST राजस्व और मासिक संरक्षित राजस्व के बीच अंतर 23,450 करोड़ रु. का है। राज्यों के लिये मार्च की क्षतिपूर्ति को जुलाई के अंत में जारी किया गया, जबकि इस वित्त वर्ष के 4 माह (अप्रैल से जुलाई) के लिये क्षतिपूर्ति विचाराधीन है।

विवाद की वर्तमान स्थिति

  • वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निकट भविष्य में राज्यों को क्षतिपूर्ति करने की केंद्र की अक्षमता की रिपोर्ट के बाद ताजा विवाद उत्पन्न हो गया है। भारत के महान्यायवादी की कानूनी राय है कि ‘केंद्र राजस्व में कमी के लिये भुगतान करने हेतु बाध्य नहीं है’। इसके बाद विवाद और बढ़ गया।
  • महान्यायवादी ने सुझाव दिया है कि जी.एस.टी. परिषद केंद्र से सिफारिश कर सकती है कि वह राज्यों को ‘क्षतिपूर्ति निधि से भविष्य की प्राप्तियों के सामर्थ्य के आधार पर उधार लेने की अनुमति दे’ और केंद्र को इस मामले में अंतिम निर्णय लेना होगा।
  • पंजाब, केरल, बिहार जैसे राज्य राजस्व अंतर को पाटने के लिये उधार लेने के पक्ष में नहीं हैं, जिसे क्षतिपूर्ति उपकर निधि से चुकाया जाएगा। उनका विचार है कि राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये क्षतिपूर्ति निधि में प्राप्तियाँ बहुत कम होने की सम्भावना है।

मुद्दा

  • इस वर्ष नकारात्मक जी.डी.पी. वृद्धि दर की उम्मीद की जा रही हैं और सांकेतिक जी.डी.पी. (Nominal GDP) पिछले वर्ष के स्तर के करीब है।
  • चूँकि अप्रत्यक्ष करों को लेनदेन के सांकेतिक मूल्य पर लगाया जाता है, परिणामस्वरुप राज्यों के सुनिश्चित कर संग्रह में महत्त्वपूर्ण कमी होने की सम्भावना है। समस्या का एक प्रमुख स्रोत 14% की कर वृद्धि दर की गारंटी है, जो इस वर्ष लगभग असम्भव है।
  • सरकार और आर.बी.आई. द्वारा मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4%(+- 2) निर्धारित किया गया है, जिसका निहितार्थ है की वास्तविक जी.डी.पी. में वृद्धि होगी और अनुमानत: (9% का) कर उछाल भी होगा। हालाँकि, इस वर्ष के लिये यह एक अवास्तविक लक्ष्य है।

सम्भव संकल्प व उपाय

  • पहला, गारंटी की अवधि को कम करके तीन वर्ष करने के लिये संविधान में संशोधन किया जा सकता है। यह अवधि जून 2020 में समाप्त हो जाएगी। हालाँकि, यह एक कठिन विकल्प है।
  • दूसरा, केंद्र सरकार अपने स्वयं के राजस्व से इस कमी को वित्तपोषित कर सकता है। हालाँकि, इसके लिये भी यह एक कठिन समय है।
  • तीसरा, केंद्र उपकर निधि के बीहाफ़/आधार पर उधार ले सकता है। उपकर की अवधि को पाँच वर्ष से आगे तब तक बढ़ाया जा सकता है जब तक कि एकत्रित किया गया उपकर इस ऋण और उस पर ब्याज का भुगतान करने के लिये पर्याप्त न हो जाए।
  • चौथा, केंद्र राज्यों को समझा सकता है कि 14% वृद्धि का लक्ष्य हमेशा से अवास्तविक रहा है। लक्ष्य को सांकेतिक जी.डी.पी. वृद्धि से जोड़ा जाना चाहिये था।

आगे की राह

संविधान केंद्र को राज्यों की कमी की भरपाई के लिये बाध्य करता है और एकत्रित किया गया उपकर इस उद्देश्य के लिये पर्याप्त नहीं होगा। राज्यों ने कर या उपकर की दरों को बढ़ाने या 28% स्लैब और क्षतिपूर्ति उपकर के तहत अधिक वस्तुओं को लाने का सुझाव दिया है। पंजाब ने सुझाव दिया है कि बाकी के राजस्व अंतर को केंद्र द्वारा बाजार से उधार के माध्यम से पाटा जा सकता है और फिर राज्यों को क्षतिपूर्ति दिया जा सकता है। इसके लिये जी.एस.टी. परिषद को एक व्यावहारिक समाधान खोजना चाहिये।

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