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डी.एन.ए. परीक्षण : प्रक्रिया, उपयोगिता एवं चुनौतियाँ

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

12 जून को अहमदाबाद एयरपोर्ट से लंदन जा रहे एयर इंडिया फ्लाइट 171 की दुर्घटना में कई लोगों की जान चली गई। दुर्घटना के बाद मृतकों के शरीर के अवशेषों की पहचान करने के लिए डी.एन.ए. परीक्षण (DNA Analysis) का सहारा लिया जा रहा है।

डी.एन.ए. परीक्षण के बारे में

  • क्या है : इस तकनीक का उपयोग डी.एन.ए. एकत्र करके व्यक्तियों की पहचान के लिए किया जाता है। इसमें मुख्यत: मृतकों के शरीर के अवशेषों के साथ पहचानकर्ताओं (प्राय: पीड़ितों के माता-पिता) के डी.एन.ए. प्रोफाइल की तुलना की जाती है।
    • डी.एन.ए. (Deoxyribonucleic Acid) जीवों का आनुवंशिक आधार है जो विकास, कार्यप्रणाली एवं प्रजनन के निर्देशों को वहन करता है। यह माता-पिता से संतानों में स्थानांतरित होता है।
  • STRs : यद्यपि मानव डी.एन.ए. (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल) 99.9% समान होता है किंतु शेष 0.1% में ऐसे अद्वितीय अनुक्रम होते हैं जिन्हें शॉर्ट टैन्डम रिपीट्स (STRs) कहा जाता है।
    • ये STRs फोरेंसिक जांच में महत्वपूर्ण होते हैं। डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग में इन विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित किया जाता है जिससे व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।
    • वर्तमान में STRs मानव पहचान निर्धारण एवं पितृत्व परीक्षण के लिए सर्वाधिक उपयोग किए जाने वाले जीनसूत्र हैं।
  • महत्त्व : यह प्रक्रिया उस वक्त विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है जब शव अत्यधिक क्षतिग्रस्त या सड़ चुके होते हैं।

डी.एन.ए. परीक्षण की प्रक्रिया

  • नमूने एकत्र करना : दुर्घटना में मृतकों के शरीर से विभिन्न प्रकार के नमूने, जैसे- अस्थियाँ, रक्त, नाखून, त्वचा एवं अन्य शारीरिक तरल एकत्र किए जाते हैं। इन नमूनों को प्रशिक्षित फोरेंसिक विशेषज्ञ द्वारा इकट्ठा किया जाता है ताकि कोई संदूषण (Contamination) न हो।
  • नमूने का संरक्षण एवं संग्रहण : जब शव के अवशेष अत्यधिक क्षतिग्रस्त होते हैं, तो डी.एन.ए. नमूने को विशेष तापमान (-20°C) पर संग्रहित किया जाता है। मुलायम ऊतक (जैसे- त्वचा व मांस) 95% एथेनॉल में संरक्षित किए जाते हैं।
  • डी.एन.ए. का विश्लेषण : एक बार नमूने इकट्ठे होने के बाद पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (PCR) तकनीक का उपयोग करके डी.एन.ए. को संवर्धन किया जाता है। इसके बाद जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा डी.एन.ए. के टुकड़ों को उनके आकार के आधार पर अलग किया जाता है।
  • सामान्यीकृत डी.एन.ए. प्रोफाइल बनाना : इसके बाद डी.एन.ए. के विशिष्ट मार्करों (STRs) को कंप्यूटराइज्ड सिस्टम की मदद से विश्लेषित किया जाता है जिससे एक विशिष्ट डी.एन.ए. प्रोफाइल तैयार किया जाता है।
  • मिलान एवं पहचान : तैयार किए गए प्रोफाइल को डी.एन.ए. डाटाबेस में संग्रहीत अन्य प्रोफाइल से मिलाकर उस व्यक्ति की पहचान की जाती है।

डी.एन.ए. परीक्षण की ऐतिहासिक उपयोगिता

  • 2004 की हिंद महासागर की सुनामी : सुनामी के बाद अत्यधिक संख्या में शवों की पहचान के लिए डी.एन.ए. परीक्षण का उपयोग किया गया था।
  • 2009 विक्टोरियन बुशफायर्स (ऑस्ट्रेलिया) : जले हुए शवों की पहचान हेतु।
  • 2001 में (9/11) आतंकी हमले : न्यूयॉर्क में हुए आतंकी हमले में मारे गए व्यक्तियों की पहचान के लिए भी डी.एन.ए. परीक्षण किया गया था।
  • 2014 में MH17 विमान दुर्घटना (यूक्रेन) : इस विमान दुर्घटना में मारे गए 298 लोगों की पहचान के लिए डी.एन.ए. तकनीक का सहारा लिया गया था।

डी.एन.ए. परीक्षण में आने वाली चुनौतियाँ

  • नमूने का प्रदूषण (Contamination) : दुर्घटना के बाद विभिन्न वातावरणीय कारकों (जैसे- उच्च तापमान 1500°C) और अपवाह के कारण नमूने संदूषित हो सकते हैं, जिससे परिणाम गलत या अस्पष्ट हो सकते हैं।
  • नमूने की गुणवत्ता : डी.एन.ए. परीक्षण की सफलता काफी हद तक नमूने की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। यदि नमूना बहुत खराब हो या मिश्रित हो, तो परिणाम सही नहीं आते हैं।
  • डाटा विश्लेषण एवं व्याख्या : डी.एन.ए. प्रोफाइल को सही तरीके से विश्लेषित करना एवं व्याख्या करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि किसी भी तकनीकी त्रुटि से गलत परिणाम आ सकते हैं।
  • नैतिक एवं गोपनीयता मुद्दे : डी.एन.ए. परीक्षण में गोपनीयता का उल्लंघन और गलत व्याख्या के संभावित मामले भी हो सकते हैं। इसके अलावा, पितृत्व परीक्षण जैसी प्रक्रियाओं में भी नैतिक सवाल उठ सकते हैं।

आगे की राह 

  • तकनीकी उन्नयन : डी.एन.ए. विश्लेषण के लिए स्वचालित उपकरण व सॉफ्टवेयर का उपयोग बढ़ाना।
  • प्रशिक्षण : फोरेंसिक विशेषज्ञों को नियमित प्रशिक्षण व शिक्षण प्रदान करना।
  • मानकीकृत प्रोटोकॉल : इंटरपोल के डिज़ास्टर विक्टिम आइडेंटिफिकेशन (DVI) दिशानिर्देशों का पालन करना।
  • जागरूकता : आपदा प्रबंधन में डी.एन.ए. विश्लेषण की भूमिका के बारे में जनता एवं अधिकारियों को शिक्षित करना।
  • वित्तीय निवेश : फोरेंसिक लैब व उपकरणों में अधिक निवेश।
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