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जादुई चिकित्सा और काला जादू प्रथाएँ : एक विश्लेषण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 1: भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय, सामाजिक सशक्तीकरण)

संदर्भ

असम के गोलाघाट जिले में बैपटिस्ट चर्च के परियोजना समन्वयक प्रांजल भुइयां को जादुई चिकित्सा के आरोपों के आधार पर ‘असम हीलिंग (बुराई) प्रथा रोकथाम अधिनियम, 2024’ के तहत गिरफ्तार किया गया। अदालत ने हाल ही में इस मामले को खारिज कर दिया, जिससे जादुई चिकित्सा एवं काला जादू प्रथाओं पर पुन: चर्चा शुरू हो गई है।

भारत में काला जादू/जादुई चिकित्सा की स्थिति

  • भारत में जादुई चिकित्सा की प्रथाएँ विभिन्न रूपों में प्रचलित हैं। कई लोग इसे एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति मानते हैं जबकि अन्य इसे अंधविश्वास के रूप में देखते हैं। 
  • जादुई चिकित्सा का उपयोग प्राय: मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है किंतु इसके पीछे की वैज्ञानिकता पर सवाल उठते हैं।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2021 के आँकड़ों के अनुसार, जादू-टोना से संबंधित 68 हत्याएँ और छह मानव बलि की घटनाएँ दर्ज की गईं हैं। 
  • छत्तीसगढ़ (20 मामले), मध्य प्रदेश (18 मामले) और तेलंगाना (11 मामले) जैसे राज्यों में जादू-टोना से संबंधित अपराध सर्वाधिक हैं। 
  • उच्च साक्षरता दर वाले केरल जैसे प्रगतिशील राज्यों में भी मानव बलि एवं अंधविश्वास से प्रेरित अपराध सामने आए हैं। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में ‘टोनही’ या ‘डायन के रूप में महिलाओं को चिह्नित करना और उनके खिलाफ हिंसा आम है। 
  • शहरी क्षेत्रों में जादुई उपचार के नाम पर ठगी एवं शोषण की घटनाएँ बढ़ रही हैं। ये प्रथाएँ प्राय: सामाजिक अज्ञानता, गरीबी एवं वैज्ञानिक शिक्षा की कमी से प्रेरित होती हैं।

संबंधित कानून

भारत में काला जादू एवं अंधविश्वास से संबंधित अपराधों के लिए कोई केंद्रीय कानून नहीं है। हालांकि, कई राज्यों ने इस समस्या से निपटने के लिए विशेष कानून बनाए हैं:

  • बिहार : प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिसेज एक्ट, 1999 
  • झारखंड : प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिसेज एक्ट, 2001 
  • छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ जादू प्रताड़ना निवारण अधिनियम, 2005 
  • ओडिशा : ओडिशा प्रिवेंशन ऑफ विच-हंटिंग अधिनियम, 2013 
  • महाराष्ट्र : महाराष्ट्र प्रिवेंशन एंड इरैडिकेशन ऑफ ह्यूमन सैक्रिफाइस एंड अदर इनह्यूमन, एविल एंड अघोरी प्रैक्टिसेज एंड ब्लैक मैजिक एक्ट, 2013
  • राजस्थान : राजस्थान प्रिवेंशन ऑफ विच-हंटिंग एक्ट, 2015 
  • असम : ‘असम हीलिंग (ईविल) प्रथा रोकथाम अधिनियम, 2024 एवं असम विच हंटिंग (प्रोहिबिशन, प्रिवेंशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 2015  
  • कर्नाटक : कर्नाटक प्रिवेंशन एंड इरैडिकेशन ऑफ इनह्यूमन एविल प्रैक्टिसेज एंड ब्लैक मैजिक एक्ट, 2017

भारतीय दंड संहिता (IPC) में अपहरण और हत्या जैसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है किंतु अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले अपराधों के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।

काला जादू परंपराओं को समाप्त करने में चुनौतियाँ

  • अंधविश्वास की गहरी जड़ें : ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है जिसे चुनौती देना मुश्किल है।
  • शिक्षा एवं जागरूकता की कमी : वैज्ञानिक चेतना एवं तार्किक सोच का अभाव काला जादू व जादुई उपचार की मांग को बढ़ाता है।
  • लैंगिक भेदभाव : डायन-शिकार में अधिकांश पीड़ित महिलाएँ होती हैं जो सामाजिक असमानता एवं पितृसत्तात्मक मानसिकता को दर्शाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक : गरीबी व बेरोजगारी लोगों को तथाकथित ‘जादू-टोना’ उपचारों की ओर आकर्षित करती है।
  • प्रवर्तन में कमी : कई राज्यों में कानून होने के बावजूद उनके कार्यान्वयन में कमी एवं पुलिस सुधारों की आवश्यकता बाधा बन रही है।

आगे की राह

  • केंद्रीय कानून : एक व्यापक राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता है जो अंधविश्वास, काला जादू एवं डायन-शिकार से संबंधित अपराधों को संबोधित करे। यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का सम्मान करते हुए सख्त दंड व जागरूकता प्रावधानों को शामिल करे।
  • शिक्षा व वैज्ञानिक चेतना : स्कूल पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक सोच व तार्किक विश्लेषण को बढ़ावा देना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।
  • महिला सशक्तिकरण : लैंगिक समानता व महिला सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करके डायन-शिकार जैसी प्रथाओं को कम किया जा सकता है।
  • कानून प्रवर्तन में सुधार : पुलिस व स्थानीय प्रशासन को अंधविश्वास से संबंधित अपराधों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
  • सामुदायिक भागीदारी : स्थानीय समुदायों, धार्मिक नेताओं व गैर-सरकारी संगठनों को अंधविश्वास के खिलाफ अभियान में शामिल करना चाहिए।
  • मीडिया की भूमिका : जिम्मेदार पत्रकारिता एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अंधविश्वास के खतरों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सकती है।

निष्कर्ष

जादू-टोना और काला जादू प्रथाएँ भारत में सामाजिक प्रगति और मानवाधिकारों के लिए एक गंभीर चुनौती हैं। ये प्रथाएँ न केवल अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं, बल्कि महिलाओं और कमजोर वर्गों के खिलाफ हिंसा को भी प्रेरित करती हैं। यद्यपि कुछ राज्यों ने कानून बनाए हैं किंतु एक केंद्रीय कानून, शिक्षा व सामाजिक जागरूकता की कमी इस समस्या को जटिल बनाती है। दीर्घकालिक समाधान के लिए, सरकार, नागरिक समाज व समुदायों को मिलकर वैज्ञानिक चेतना एवं सामाजिक समानता को बढ़ावा देना होगा।

इसे भी जानिए!

नरेंद्र दाभोलकर के बारे में

  • नरेंद्र दाभोलकर एक भारतीय चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, तर्कवादी एवं लेखक थे।
  • इन्होंने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (MANS) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य काला जादू प्रथाओं एवं अंधविश्वास को समाप्त करना था।
  • इस समिति ने अंधविश्वास के खिलाफ सार्वजनिक प्रदर्शन व जागरूकता अभियान चलाए।
  • वर्ष 2013 में इनकी हत्या कर दी गई थी। वर्ष 2014 में इन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
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