(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में पुष्टि की है कि मानसिक स्वास्थ्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन एवं सम्मान के अधिकार का अभिन्न अंग है। यह निर्णय मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के राज्य के कर्तव्य पर बल देता है।
हालिया वाद के बारे में
- सुकदेब साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य वाद में एक पिता ने नीट (NEET) की परीक्षा में शामिल होने वाली अपनी 17 वर्षीय पुत्री को विशाखापत्तनम के एक छात्रावास में गायब होने का दावा किया था।
- स्थानीय पुलिस द्वारा इस मामले की पूरी जाँच न करने से असंतुष्ट होकर उन्होंने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) से जाँच की माँग की।
- आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उनकी याचिकाएँ खारिज कर दीं, जिसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच सी.बी.आई. को सौंपने का आदेश देने के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मानसिक स्वास्थ्य को जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग भी घोषित किया।
- मानसिक स्वास्थ्य को एक अंतर्निहित अधिकार के रूप में मान्यता देकर न्यायालय उत्पीड़न के संरचनात्मक पहलू को पहचानने के साथ ही समस्या को एक सार्वजनिक अन्याय के रूप में पुनर्निर्मित किया।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- एक अधिकार के रूप में मानसिक स्वास्थ्य : सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मनोवैज्ञानिक कल्याण समग्र स्वास्थ्य से अविभाज्य है और देखभाल से इनकार करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- राज्य प्राधिकरणों को निर्देश : सरकारों को बुनियादी ढाँचे, पेशेवरों की उपलब्धता और उपचार तक किफ़ायती पहुँच को मज़बूत करना होगा।
- मौजूदा कानून के साथ एकीकरण : यह निर्णय मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के अनुरूप है जो पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार को मान्यता देता है और आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है।
निर्णय का महत्त्व
मौलिक अधिकार के रूप में मानसिक स्वास्थ्य
- संविधान में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करके न्यायालय ने एक उन्नत मानक मानदंड स्थापित किया है।
- इसके माध्यम से नागरिक अपने मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा को केवल एक वैधानिक अधिकार के रूप में नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार के रूप में अपनाने पर ज़ोर दे सकते हैं।
साहा दिशानिर्देश
- इसके अंतर्गत स्कूलों, कॉलेजों, छात्रावासों एवं कोचिंग संस्थानों को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे से निपटने के लिए सक्रिय रूप से सहायता प्रणालियाँ विकसित करने की आवश्यकता है।
- राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर नियमों को लागू करने और जिला-स्तरीय निगरानी समितियों के गठन को अनिवार्य बनाने का निर्देश है।
- जब तक संसद एक पूर्ण संहिता पारित नहीं कर देती है तब तक इन दिशानिर्देशों का विधायी प्रभाव रहेगा।
- अनुच्छेद 21 में मनोवैज्ञानिक अविभाज्यता को शामिल करने का अर्थ है कि न्यायालय ने इन मानसिक स्वास्थ्य पीड़ितों की सुनवाई एवं सुरक्षा के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।
क्या आप जानते हैं?
जोहान गाल्टुंग का संरचनात्मक हिंसा का सिद्धांत यह मानता है कि ऐसी सामाजिक संरचनाएँ जो व्यक्तियों को बुनियादी ज़रूरतों से वंचित करके उन्हें व्यवस्थित रूप से नुकसान पहुँचाती हैं, वे भी प्रत्यक्ष हिंसा जितनी ही निंदनीय हैं।
|
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017
- यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को किफ़ायती, गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार है।
- यह उपचार के संबंध में रोगी को अग्रिम निर्देश एवं निर्णयन का अधिकार प्रदान करता है।
- सरकार को प्रत्येक ज़िले में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिए बाध्य करता है।
आगे की राह
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की जानी चाहिए जो वर्तमान में कुल स्वास्थ्य बजट आवंटन के 1% से भी कम है।
- कार्यबल, जैसे- मनोचिकित्सक, परामर्शदाता, सामाजिक कार्यकर्ता की उपलब्धता में सुधार करने की आवश्यकता है।
- जागरूकता एवं कलंक-मुक्ति अभियानों को मज़बूत बनाने पर बल दिया जाना चाहिए।
- मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत किया जाना चाहिए।