(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 1 & 2 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय।) |
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2026 को ‘महिला कृषक का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक खाद्य सुरक्षा और लैंगिक समानता में महिला किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करना है।
महिला कृषकों की भूमिका के बारे में
- खाद्य उत्पादन में योगदान: वैश्विक खाद्य आपूर्ति का लगभग 50% और दक्षिण एशिया में कृषि श्रम का 39% महिलाओं के योगदान से आता है। भारत में, आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाओं में से लगभग 80% कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं।
- खाद्य सुरक्षा: महिला किसान न केवल खाद्य उत्पादन में योगदान देती हैं, बल्कि पोषण सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करती हैं।
- सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं को कृषि में सशक्त बनाने से लैंगिक समानता, गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है।
महिला कृषकों के समक्ष चुनौतियाँ
- भूमि स्वामित्व की कमी : भारत में केवल 14% भूमि की स्वामी महिलाएं हैं, और नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार यह आंकड़ा मात्र 8.3% है। इससे ऋण और वित्तीय संसाधनों तक पहुंच में बाधा आती है।
- सूचना और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच : महिलाओं के पास मोबाइल फोन और अन्य तकनीकों तक पहुंच कम है, जिसके कारण कृषि नियोजन और जलवायु-संबंधी सलाह तक उनकी पहुंच सीमित रहती है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और सूखे जैसे जोखिम बढ़ते हैं, जो महिला किसानों की आजीविका और घरेलू जिम्मेदारियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- वित्तीय बाधाएँ: माइक्रोफाइनेंस और स्वयं सहायता समूह (SHG) कुछ सहायता प्रदान करते हैं, लेकिन ये ऋण बड़े निवेश के लिए अपर्याप्त हैं।
सरकारी प्रयास
- महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना : यह परियोजना महिलाओं के कौशल विकास और संसाधनों तक पहुंच को बढ़ावा देती है।
- कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन : यह मशीनरी के लिए 50-80% सब्सिडी प्रदान करता है, जिससे महिलाओं को आधुनिक उपकरणों तक पहुंच मिलती है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन : इसका 30% बजट कई राज्यों में महिला किसानों के लिए आवंटित है।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : यह जलवायु जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करती है, जो महिला किसानों के लिए महत्वपूर्ण है।
ENACT परियोजना: एक मॉडल
असम के नागांव जिले में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और असम सरकार द्वारा कार्यान्वित ENACT परियोजना (Enhancing Climate Adaptation of Vulnerable Communities through Nature-based Solutions and Gender-transformative Approaches) महिला किसानों को सशक्त बनाने का एक उदाहरण है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- जलवायु-संबंधी जानकारी: यह परियोजना 17 गाँवों में 300 से अधिक किसानों को साप्ताहिक कृषि और जलवायु सलाह प्रदान करती है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: सूचना प्रौद्योगिकी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विशेषज्ञों से जुड़ाव।
- बाढ़-प्रतिरोधी फसलें: बाढ़-प्रतिरोधी चावल की किस्में और पौष्टिक स्थानीय फसलों को बढ़ावा देना।
- आजीविका विविधीकरण: सामुदायिक बीज उत्पादन और बाजार से जुड़ाव के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देना।
- सहयोग: यह परियोजना कृषि विश्वविद्यालयों, मौसम विज्ञान विभाग और ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ साझेदारी में कार्य करती है।
महिला कृषक संबंधी विभिन्न पहलू
खाद्य सुरक्षा और पोषण
- महिला किसानों का सशक्तिकरण सतत विकास लक्ष्य (SDG) 2 (शून्य भुखमरी) और SDG 5 (लैंगिक समानता) को समर्थन देता है।
- भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करता है।
जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन
- जलवायु परिवर्तन से प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ सबसे कमज़ोर हैं। ENACT जैसी परियोजनाएँ जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देती हैं।
- भारत के राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) और पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ संरेखण।
लैंगिक समानता
- भूमि स्वामित्व और संसाधनों तक पहुंच में लैंगिक असमानता को दूर करना सामाजिक न्याय और आर्थिक समावेशन के लिए आवश्यक है।
- नीति निर्माण में लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता।
आर्थिक विकास
- महिला किसानों को सशक्त बनाने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है और आत्मनिर्भर भारत अभियान को समर्थन मिलता है।
- स्वयं सहायता समूह (SHG) और माइक्रोफाइनेंस के माध्यम से वित्तीय समावेशन।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
- सूचना प्रौद्योगिकी और जलवायु-प्रतिरोधी फसलों का उपयोग आधुनिक कृषि में नवाचार का प्रतीक है।
- डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहल इसे समर्थन दे सकती हैं।
भविष्य के लिए कदम
- लिंग-संवेदनशील नीतियाँ: नीति निर्माण में महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं पर ध्यान देना।
- संसाधनों तक पहुंच: भूमि स्वामित्व, वित्तीय सेवाओं और प्रौद्योगिकी तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाना।
- कौशल विकास: टिकाऊ कृषि और आधुनिक तकनीकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- सहयोग और नेटवर्किंग: स्वयं सहायता समूहों और सामुदायिक संगठनों को मजबूत करना।
- जलवायु-लचीली कृषि: बाढ़ और सूखा-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना और बाजार से जुड़ाव सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
वर्ष 2026 को महिला किसान का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाना भारत के लिए एक अवसर है कि वह खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता और जलवायु-लचीले कृषि विकास को बढ़ावा दे। महिला किसानों को सशक्त बनाकर, भारत न केवल अपनी खाद्य सुरक्षा को मजबूत कर सकता है, बल्कि सतत और समावेशी विकास के वैश्विक लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकता है।