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श्रमबल का संकट और धान की खेती

(प्रारम्भिक परीक्षा: सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली)

पृष्ठभूमि

  • पंजाब और हरियाणा में श्रमबल की कमी के कारण, किसानों को पारम्परिक रोपाई के स्थान पर धान की सीधी रोपाई  (Direct Seeding of Rice) अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • ध्यातव्य है कि कोविड-19 महामारी के कारण बड़ी संख्या में मज़दूरों का अपने गाँवों की ओर पलायन हुआ है, जिससे खेतों में काम करने वाले मज़दूरों की संख्या में कमी आई है।

प्रमुख बिंदु

  • धान की पारम्परिक रोपाई : इस रोपाई में, किसान पहले नर्सरी (यह क्षेत्र मुख्य बुवाई वाले क्षेत्र का 5-10% होता है ) में धान के बीजों की पौध तैयार करते हैं, फिर 20-25 दिन बाद इस छोटी पौध को उखाड़कर मुख्य क्षेत्र में रोपा जाता है। पौध रोपने का यह कार्य श्रमिकों द्वारा किया जाता है।
  • धान की सीधी रोपाई : इस पद्धति में पूर्व-अंकुरित बीजों को ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीन की सहायता से, सीधे खेत में डाला जाता है। इसमें नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती है।

किसानों को खेत कि जुताई व प्लैंकिंग (मिट्टी की सतह को चिकना करना) करने की तथा एक बार खेत की सिंचाई करने की आवश्यकता होती है जिसके बाद बीज की बुवाई और शाकनाशी का छिड़काव किया जाता है।

  • खरपतवारों से बचाव : जलमग्न अवस्था में ऑक्सीजन से वंचित रहने के कारण से खरपतवारों का विकास नहीं हो पाता है तथा  धान के पौधों में मौजूद नरम 'एरेन्काइमा ऊतक या वायु ऊतक' हवा को अपनी जड़ों में घुसने देते हैं। इस प्रकार, पानी धान के लिये एक प्रकार से शाकनाशी के रूप में कार्य करता है।
  • सामान्य रोपाई विधि: पहले तीन सप्ताह या इसके बाद रोपाई में पौधों को लगभग रोजाना सींचना पड़ता है ताकि 4-5 सेमी पानी की गहराई बनाई रखी जा सके।
  • डी.एस.आर. विधि: इस विधि में बुवाई के दौरान खेतों में पानी नहीं भरा जाता है, अतः खरपतवार को ख़त्म करने के लिये रासायनिक शाकनाशियों (chemical herbicides) का उपयोग किया जाता है।

चावल की सीधी रोपाई से फायदे :

  • पानी की बचत।
  • कम संख्या में मज़दूरों की आवश्यकता।
  • श्रम लागत कम लगती है, सामान्यतः तीन मजदूरों को लगभग 2,400 रुपए में एक एकड़ धान की रोपाई करनी होती है।
  • पानी के कम भराव के कारण मीथेन का उत्सर्जन कम होता है।

चावल की सीधी रोपाई की खामियाँ :

  • शाकनाशियों की अनुपलब्धता।
  • इस पद्धति के लिये बीज की आवश्यकता भी ज़्यादा होती है  इसमें 8-10 किग्रा/एकड़ धान के बीजों की आवश्यकता होती है वहीँ सामान्य रोपाई में 4-5 किलो/एकड़ बीज ही लगते हैं।
  • डी.एस.आर. में भूमि का समतल होना ज़रूरी होता है, जबकि सामान्य रोपाई में ऐसा नहीं है और इसमें लागत भी अधिक आती है, आमतौर पर यह लागत लगभग 1,000 रुपए/एकड़ के आसपास आती है।
  • बुवाई समय पर करनी पड़ती है ताकि मानसून की बारिश आने से पहले पौधे ठीक से बाहर आ जाएँ।
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